उदयपुर के गोविन्द की “बिंदास” कहानी
हम में से कई लोग अस्थायी मुसीबतों से हार मान लेते है, बिना अपने और अपने परिवार का सोचे आत्म हत्या का फैसला तक कर देते है, शायद इसलिए तो नहीं कि हमें हमारी उम्मीदों और ज़रुरतो से ज्यादा मिल जाता है और फिर यदि कभी कही थोडा कम हो गया तो ज़िन्दगी से निराश हो गए.
पर कुछ लोग ऐसे भी है जो स्थायी परेशानिया ले कर जन्म लेते है, उनके जीवन में ख़ुशीयां कम और ग़म ज्यादा आते है, पर उनके पास सकारात्मकता का मानो भंडार छुपा होता है जो कभी निराश नहीं होने देता, ऐसी ही एक कहानी है हमारे शहर उदयपुर के गोविन्द खारोल की.
जब स्कूल में एडमिशन के लिए गए तो यह कह कर मना कर दिया कि “इस बच्चे को स्पेशल स्कूल में दाखिला दिलवाइए, ये यहाँ सेट नहीं हो पायेगा” ; माँ बाप की जिद के आगे स्कूल को मानना पड़ा और आखिरकार एडमिशन दे दिया. तमाम कठनाइयों और चुनौतियों के साथ स्कूल, फिर कॉलेज, और फिर बी.एड तक की पढाई पूरी की.एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी के लिए टेलीफोन पर इंटरव्यू दिया, ईमेल से बायो डाटा भेजा, कंपनी ने नौकरी पक्की कर ली और ऑफिस बुलाया, परन्तु देखते ही कह दिया “आप से नहीं हो पायेगा” और नौकरी नहीं दी.
30 वर्षीय गोविन्द के दोनों हाथ जन्म से ही नहीं है फिर भी एक आम व्यक्ति यदि 100 चीज़े कर सकता है तो गोविंद का कहना है कि वह 101 काम कर सकता है, हो सकता है उसके शरीर की ताक़त और क्षमता कम हो, पर उसके हौसले और आत्म विश्वास की कोई सीमा नहीं.आज गोविंद सिर्फ गोविन्द नहीं बल्कि बिंदास गोविन्द के नाम से जाना जाते है, बिंदास साइकिलिंग, बिंदास फोटोग्राफी, वीडियोग्राफी, बिंदास ट्रैकिंग जैसे गोविन्द कई क्लब है जिसमे बहुत से लोग जुड़े हुए है और गोविन्द से प्रेरणा ले रहे है.
गोविन्द बताते है, “स्कूल में मेरा कोई दोस्त नहीं बनता, मैं अपनी आप से लड़ रहा था पर कॉलेज पहुचते हुए मेरे में काफी आत्म विश्वास आ चुका था, कही भी जाता लोग मुझे अजीब नजरो से देखते, पहले में गबराता फिर मैं भी उन्हें देखता, जैसे इशारो में कह रहा होता “बताइए क्या देखा? मैं भी देखता हूँ”
“कॉलेज में हर कार्यक्रम में मैं हिस्सा लेता, साथियो का भी सपोर्ट मिला, उसी दौरान मै “शिक्षांतर” के मनीष जैन के संपर्क में आया, उन्होंने मुझे पैशन को फॉलो करना सिखाया, फोटो और विडियो ग्राफी ने मुझे लुभाया, और मुझे जीवन मे एक मकसद मिला.”बचपन में किराए की साईकल पर खुद गिरते पड़ते साईकल चलाना सिखा था, अब खुद का साइकिलिंग क्लब है, गोविन्द अब एक कस्टमाइज साइकिल बनवाने के लिए फण्ड जुटा रहे है.
इसके साथ ही गोविन्द एक बहुत अच्छे रनर भी है, कई मैराथन में हिस्सा ले चुके है, पर्वतारोहण का भी शौक है, फोटोग्राफी तो कमाल करते ही है साथ ही फुटबाल को भी अपने पैरो तले बखूबी नचा लेते है.जब पूछा कि आप इतने पॉजिटिव कैसे हो, तो गोविन्द ने बताया कि वे लोअर-मिडिल क्लास परिवार से है, आर्थिक स्थिति बहुत ज्यादा अच्छी नहीं है फिर भी माँ पिताजी, भाई बहनों का सपोर्ट मेरे पॉजिटिव होने में सबसे बड़ा योगदान है, वे मेरे हर फैसले के साथ खड़े रहे, मुझे आत्मनिर्भर बनाया.
गोविन्द का कहना है – बुराई, नकारात्मकता बहुत बार सामने आई पर मेरा उद्देश्य बहुत स्पष्ट है, इसलिए कभी गलत बाते और गलत आदते हावी नहीं हो पाई. साइकिलिस्ट, फ़िल्ममेकर, फुटबॉलर, फोटोग्राफर, रनर, ट्रेवलर, एक्स्प्लोरर, हायकर – इतने टैलेंट एक व्यक्ति में, शायद इसलिए गोविंद को Bindaas Govind कहते है.