हाथीपोल की खाई का दिलचस्प तथ्य

 हाथीपोल की खाई का दिलचस्प तथ्य

आज से क़रीब 50 साल पहले तक दिल्ली दरवाज़े से हाथीपोल तक शहरकोट मौजूद थी और अश्विनी बाज़ार नहीं बना था।

पुराने शहर के अंदर जाने के लिये हाथीपोल के दरवाज़ों के अंदर से जाना आना होता था। इस पूरी क़रीब एक किलोमीटर लंबाई में शहर कोट से सटी एक खाई ( नहरनुमा खुदाई) लगभग 10 मीटर चौड़ी और 3 मीटर गहरी थी जिसमें वर्षा होने पर पानी भर जाता था जो धीरे धीरे ज़मीन में रिस कर भूजल पुनर्भरण करता था और काफ़ी दिनों तक इसमें पानी भरा रहता था।

दिल्ली दरवाज़े पर इस खाई के अतिरिक्त पानी का निकास था जो अभी शक्तिनगर का नाला है। यह खाई एक तरह से विशालकाय भूजल पुनर्भरण संरचना (water harvesting structure) थी और शहर के अंदर से आने वाले पानी का संग्रह कर उसकी तीव्रता को कम करती थी।

इसकी जल संग्रह क्षमता लगभग 1,60,00,000 लिटर थी और इस कारण सड़कों पर पानी भरने की समस्या नहीं थी। इसके साथ ही इसका मूल उद्देश्य यह भी था कि शत्रु सीधे शहरकोट न पहुँच सके उसके लिये उस समय अवरोध का काम भी करती थी।

मज़े की बात यह थी कि तब घर में कोई चीज़ छुपा दी जाती या वास्तव में गुम जाती तो यह कहते थे कि “ वा तो गई हाथीपोल री खाई में, अबे पाछी न्हीं लादे”

Information and Image Credits: Gyan Prakash Soni

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