मॉ के गर्भ मे ही बच्चो मे संस्कार का बीजारोपण होता है
विश्व महिला दिवस पर मैं डॉक्टर मीतू बाबेल आप सभी महिलाओं को नमन करती हूं । आज महिला दिवस पर मैं गर्भ संस्कार या प्रसव पूर्व शिक्षा संबंधित संवेदनशील विषय पर आधारित नवीन विचारधारा से आप सभी को साझा करना चाहती हूं।
आज वर्तमान मे, ऐसे कौन से माता-पिता हैं जो बहुप्रतिभामुखी, संस्कारी,स्वस्थ और सर्वगुण संपन्न बच्चा पाने की चाहत नही रखते ।
गर्भ संस्कार संबंधित सभी परिमाणित विचारधारा के पालन और अनुसरण से माता पिता अपनी इस इच्छा की पूर्ति कर सकते हैं।
उदहारण स्वरूप: महाभारत में अभिमन्यु ने अपनी मां के गर्भ में ही चक्रव्यूह को भेदना सीख लिया था। इसी बात को आधार मान कर आज नवीन पद्दत्ति से बच्चे के गर्भ में आने के उपरांत से ही बच्चे के संपूर्ण व्यक्तित्व की संभावित संरचना को आकार देने और उसकी मनचाही रूप रेखा को रचा जा सकता है।
आने वाली संतान के उज्ज्वल भविष्य की कामना की जा सकती हैं । गर्भ कें बारे मे नये अनुसंधान करने पर पता चला है कि गर्भधारण के क्षण से जीवन प्रारंभ होता हैं ना कि जन्म के पल से.
गर्भ में एहसास, सजगता तथा सुसंवाद की शक्ति होती है. माँ के पेट में नो मास पलते हुए और गर्भा का वातावरण (वुम्ब इकोलॉजी) बच्चे का व्यक्तित्व बनाता है.
तकनीकों में से कुछ वैज्ञानिक रूप से सिद्ध गर्भ संगीत और योग (ट्राइमेस्टरवाइज) का उपयोग हैं और बाहरी वातावरण में अपने बच्चे का स्वागत करने के लिए नियमित प्रार्थना का विशेष अभ्यास जरूरी है।
इस पर गहन कार्य एवं शोध मन:शक्ति संस्थान लोनावला महाराष्ट्र मे डॉ गजानन केलकर के नेतृत्व मे चल रहा है।
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इस आर्टिकल में व्यक्त किये गए विचार लेखक के अपने है, यह ज़रूरी नहीं कि यह विचार किसी तरह udaipurwale.com के विचारों एवं नीतियों को प्रतिबिंबित करे
डॉ मीतू बाबेल
स्त्री रोग विशेषज्ञ
उदयपुर
व्हाट्सप्प नंबर 8769311713
1 Comment
Wonderful… and very interesting…
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