त्याग, भक्ति, वीरों की धरा मेवाड़ ने “तलवार घुमर” से रचा इतिहास

 त्याग, भक्ति, वीरों की धरा मेवाड़ ने “तलवार घुमर” से रचा इतिहास

राजस्थानी भाषा के सम्मान के लिए आयोजित राजस्थान साहित्य महोत्सव “आडावळ”  ने त्याग, भक्ति, वीरों की धरा मेवाड़ में “तलवार घुमर” से इतिहास रचा, पारंपरिक वेशभूषा में सजी धजी महिलाओं द्वारा नृत्य घुमर, राजस्थानी काव्यपाठ के साथ श्रोताओं को बहुत पसंद आया.

महोत्सव के निदेशक डॉ. शिवदान सिंह जोलावास राजस्थानी भाषा को आठवीं अनुसूची में जोड़ने के लिए पिछले 22 वर्षों से अनवरत प्रयासरत है जिसमें मोट्यार परिषद तथा अनेक संस्थाओं के साथ विभिन्न गतिविधियों के माध्यम से आमजन में जागृति तथा सरकार का ध्यानाकर्षण कर इसे सम्मान दिलाने का प्रयास कर रहे है ।

डॉ. जोलावास का विचार है कि यदि हम अपनी मातृभाषा राजस्थानी को परिवार में बोलते है तो ही भाषा के साथ जुड़ाव हमारी सँस्कृति, लोकरंग एवं कला को बचाया जा सकता है । विश्वविख्यात राजस्थानी कला रोजगार के अधिक अवसर, पर्यटन को बढ़ावा तथा प्रदेश के युवाओं को प्रतियोगिता परीक्षा में चयन के अधिक अवसर देती है । किन्तु धीरे धीरे अन्य भाषाओ के प्रयोग से स्थानीय सँस्कृति, त्यौहार, पहनावा भी बदलाव के साथ राजस्थान की मूल पहचान खोने जैसी स्थिति को महसूस करते हुए । राजस्थान की कला, पहनावा, खानपान की पुनः विश्वव्यापी पहचान के लिए राजस्थान साहित्य महोत्सव “आडावळ” प्रारम्भ किया गया ।

“आडावळ” महोत्सव में जिला कलेक्टर महोदय श्रीमान ताराचंद मीणा ने राजस्थानी भाषा में घुमर गीत “मोर बोले रे” तथा “सूती थी रंग महल में” गाकर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया. पूर्वसांसद रघुवीर मीणा तथा अन्य अतिथियों के साथ पारंपरिक पोशाकों में सजी महिलाओं ने दीपदान किया एवं पीछोला झील के मध्य फूलों से नाव से बालिकाओं ने दीपदान तथा पुष्पांजलि करी ।

महोत्सव में जहां जनजाति चित्रकार मांगीलाल गमेती, कमलेश डांगी के सजीव चित्रण चित्रकारी का रंग बिखेर रहे थे तो कहीं मंगणीयार कलाकारों की लोकधुन पर्यटकों को थिरकने को मजबूर कर रही थी ।

देर रात तक चले कवि सम्मेलन का संचालन करते मेवाड़ के कवि हिम्मत सिंह उज्ज्वल, पुष्कर गुप्तेश्वर, डॉ प्रियंका, प्रहलाद सिंह जौड़ा, सोहन चौधरी चित्तौड़गढ़, राजेंद्र स्वर्णकार, सपना व्यास जैसलमेर, गिरीश विद्रोही ने अपने काव्यपाठ से श्रोताओं को मंत्र मुग्ध कर दिया.

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