आतंक के विष को संयम के अमृत से तोड़ना होगा

 आतंक के विष को संयम के अमृत से तोड़ना होगा

इस खुबसूरत उदयपुर शहर की खुशबुदार फिज़ा में नफरत की बू अब तक कभी नहीं थी पर कुछ दरिंदो के नापाक मंसूबो ने न सिर्फ एक इंसान का क़त्ल किया बल्कि सभ्य समाज के दिलों को भी चीर कर रख दिया, इस गहरे घाव को भरने में कितना वक्त लगेगा पता नहीं पर इस क़त्ल और उसमे बहे खून का हर कतरा एक दिन हिसाब मांगेगा…

इसमें कोई दोराय नहीं कि हर धर्म रक्षक है, अन्याय और बुराई से, और हर आतंक भक्षक है….आतंक धर्म नहीं और धर्म आतंक नहीं, धर्म तो क्रोध भी नहीं सिखाता तो किसी का क़त्ल, नफरत, दहशत, फितना और फसाद कैसे सिखा सकता है.

जो हुआ अघोर निंदनीय है, धर्म की आड़ में आतंक फ़ैलाने की साजिश है. पर ऐसे दरिंदो की बीमार मानसिकता से उपझे विष का तोड़ विष नहीं है, संयम का अमृत है. वर्ना आग लगाने में तो दो इंच की माचिस की तिली काफी होती है पर उसे बुझाने में हजारो लीटर पानी डालना पड़ता है. आग को आग से तो नहीं बुझा सकते ना.

उदयपुर पूरे विश्व के सैलानियों का पसंदीदा शहर है, शांत, सौम्य, सुंदर….यहाँ आतंक और नफरत का क्या काम ? मेवाड़ की गौरवमयी गाथा सत्य और धर्म की रक्षा का कथन करती है इसमें प्रातः स्मरणीय महाराणा प्रताप की वीरता के साथ हकिम खां सूरी की वफ़ादारी का भी ज़िक्र है.

सदियों से हर धर्म और संप्रदाय को संजोय रखने वाले मेवाड़ की पावन धरा पर नफ़रत का बीज कभी नहीं पनप पाया तो आज भी उसकी जड़े इस ज़मीन पर फ़ैल नहीं पायेगी. किसी एक या दो दहशतगर्दो की बीमार मानसिकता किसी धर्म या समाज का प्रतिनिधित्व नहीं करती इसलिए गृणा, कृत्य और कातिल से करें किसी समाज और धर्म से नहीं वरना नफरत तो अंधी होती है और उसका काम सिर्फ बर्बादी होता है.

पर आतंक का खात्मा तो करना होगा, सबसे पहले अपनी स्वयं की सोच को बदल कर फिर अपने परिवार से, गली मोहल्ले से, शहर से और फिर देश से. आतंक धर्म में नहीं, नफरत में है.

वैश्विक महामारी से उबरने की कोशिश करता आम जन तो सिर्फ दो वक्त की रोटी के लिए झुझ रहा है, हर इंसान वैसे ही मानसिक तनाव में जी रहा है, उस पर सांप्रदायिक तनाव कोई कितना और कब तक झेल पायेगा.

इन सब में सोशल मीडिया का एक बहुत महत्वपूर्ण और ज़िम्मेदारी भरा योगदान होना चाहिए, न कि जिस तरह आतंकियों ने अपने विष को सोशल मीडिया पर उगला और हमने जाने अनजाने उसको आगे पहुंचा कर उसे फैलाया.

हमे अपना मकसद तय करना होगा, और राष्ट्र निर्माण से बेहतर मकसद क्या हो सकता है.

आने वाली पीढ़ी राष्ट्र निर्माण कैसे करेगी यह भी हम पर निर्भर करता है, अपनी मेहनत से पढ़ लिख कर, दुनिया के साथ कंधे से कन्धा मिला कर, कामयाब हो कर या धर्म संप्रदाय, जाती की नीवं पर बने नफरत के पहाड़ पर जहाँ लाशो के ढेर के सिवा कुछ नहीं होगा.

सभी संप्रदाय और समाज को यह बात समझनी होगी कि किसी बात का विरोध और आपत्ति कानून के दायरे में व्यक्त की जाये न कि खुद कानून हाथ में ले कर.

उदयपुर के हर धर्म, संप्रदाय को इस विभस्त घटना की खुल कर निंदा करनी चाहिए…इस विष को यहीं से तोड़ने की शुरुआत हो, वैसे मेवाड़ वासियों ने अपने अपार संयम को दुनिया के सामने प्रमाणित कर ही दिया है. उम्मीद है फिर अरावली के बीच बसे इस खुबसूरत शहर की चचचाहट जल्द लौट आये.

Related post