आत्मा की अदला-बदली से दर्शाया ‘‘जैसा सत्व-जैसा शील, वैसा ही आचरण’’

 आत्मा की अदला-बदली से दर्शाया ‘‘जैसा सत्व-जैसा शील, वैसा ही आचरण’’

उदयपुर शहर के नाट्य समूह ‘‘नाट्यांश नाटकीय एवं प्रदर्शनीय कला संस्थान’’ ने रविवार को एक दिवसीय नाट्य संध्या का आयोजन किया। इस उपलक्ष्य में बोधायन द्वारा लिखित प्रसिद्ध प्रहसन ‘‘भगवदज्जुकम्’’ का मंचन किया गया।

मुलतः संस्कृत में लिखित यह प्रहसन शास्त्रीय नाट्य परम्परा का उत्कृष्ठ उदाहरण है, नाट्यशास्त्र के प्रणेता आचार्य भरतमुनि ने नाट्य के 10 रूपक बतलाए है, जिसमें बोधायन कृत भगवदज्जुकम् सातवीं शताब्दी का एक अत्यंत रोचक और सुगठित शुद्ध संस्कृत प्रहसन है। प्रहसन में हास्य रस को महत्व दिया जाता है तथा कहानी कवि-कल्पित होती है। इसमें साधू-महात्मा, ऋषि या ब्राह्मण इसका नायक होता है। इसमें विचारों, मान्यताओं और व्यक्तियों पर व्यंग्य की कुछ ऐसी प्रवृत्ति है जो इसे बहुत ही आधुनिक बना देती है।

नाटक का कथानक: भगवद् अर्थात सन्यासी और अज्जुका अर्थात गणिका।

भगवदज्जुकम् में परिव्राजक एक सन्यासी है जो की योगी व ज्ञानी है तथा उसे सिद्धी प्राप्त हैं। उनके साथ शांडिल्य नाम का एक शिष्य भी है, जो अपने चंचल स्वभाव के कारण भटका हुआ है। उसका चित्त, ध्यान और पढ़ाई में नहीं लगता हैं। शुरुआती दृश्य में परिव्राजक और उनके शिष्य शांडिल्य में काफी देर तक आत्मा और शरीर को लेकर चर्चा चलती है। योगीराज तो संसार से निस्संग हैं, पर शांडिल्य गुरुदेव के उपदेशों से दुःखी है। गुरु-शिष्य लताओं और तरह-तरह के रंग-बिरंगे पुष्पों से सुसज्जित उद्यान में उपदेश सुनते-सुनाते विचर रह करते हैं। फिर एक जगह गुरु ध्यानस्थ हो जाते हैं, तभी शांडिल्य को वसंतसेना नाम की एक गणिका और उसकी सखियाँ दिखाई देती है।

वसंतसेना इस उद्यान में अपने प्रेमी रामिलक से मिलने आई है। कुछ ही देर में वहाँ एक यमदूत वसंतसेना के प्राण लेने आता है। वह सर्प बनकर उद्यान में बैठी वसंतसेना के प्राण हर लेता है। फिर शांडिल्य वसंतसेना की मृत देह को देख कर दुःखी होता है और गुरु जी से प्रार्थना करता है कि इसे जीवित कर दें। गुरु के बार-बार समझाने पर भी जब शांडिल्य नहीं समझता तो गुरु अपने शिष्य को योगविद्या का बल दिखाने और योग का महत्व समझाने के लिए अपनी आत्मा को गणिका के शरीर में प्रवेश करा देते हैं। इससे गुरु का शरीर मृत हो जाता है और गणिका जीवित हो उठती है। तभी वहाँ पर गणिका के परिवार वाले, रामिलक और वैद्य आदि सभी आ जाते हैं।

यमदूत का पुनः प्रवेश होता है क्योंकि वह किसी और वसंतसेना के स्थान पर इस वसंतसेना के प्राण ले गया था। यमदूत वसंतसेना के प्राण लौटाने के लिए आता है परन्तु वह देखता है कि वसन्तसेना संन्यासी की तरह सबको उपदेश दे रही है। यमदूत परिव्राजक के खेल को आगे बढ़ाने के लिए गणिका का प्राणो को संन्यासी की काया में डाल देता है। अब परिव्राजक, गणिका की तरह और वसंतसेना, परिव्राजक की तरह व्यवहार करने लगते हैं। भगवद् (सन्यासी) के शरीर और अज्जुका की आत्मा से मिश्रित यह संयोजन ही भगवदज्जुकम् है।

आत्मा और शरीर के इन उलट-फेर व अदला-बदली से नाटक में एक विसंगत हास्यपूर्ण और रोचक स्थिति बन जाती है। अंत में यमदूत के आगमन से दोनों आत्माओं को अपने-अपने शरीर प्राप्त होते हैं। साथ ही शिष्य मोह-माया से मुक्त होकर गुरु को समर्पित हो जाता है।

जैसा मन वैसी वाणी और शरीर का आचरण भी वैसा ही होता है, इस कथन को चरितार्थ करती नाटक की कहानी में जीवन के गंभीर प्रश्नों का उत्तर अत्यंत सरल ढंग से देने का प्रयास किया गया। साथ ही प्रस्तुत यह नाटक, यह भी सीख देता है की किसी भी विषय को उपदेश से नहीं बल्कि अभ्यास के माध्यम से ज्यादा बेहतर सीखा जाता है।

कलाकारों का परिचय

कार्यक्रम संयोजक मोहम्मद रिजवान मंसुरी ने बताया कि नाट्यांश सोसाइटी ऑफ ड्रामेटिक एंड परफोर्मिंग आर्ट्स की प्रस्तुति ‘‘भगवदज्जुकम्’’ का मंचन हिंदी भाषा में किया गया, जिसका निर्देशन रेखा सिसोदिया द्वारा किया गया। इस प्रस्तुति में भरतमुनि के अनुसार पूर्वरंग और भरतवाक्य की अभिकल्पना, शास्त्रीय रंगमंच के अनुरूप की गई है, जिसमें संस्कृत भाषा के श्लोक गायन का प्रयोग किया गया है।

मंच पर कलाकारों में परिवाज्रक (गुरू) की भुमिका में अमित श्रीमाली और गणिका वसंतसेना की भुमिका में उर्वशी कंवरानी अपने अभिनय की छाप छोडी।

नाटक के अन्य महत्वपुर्ण किरदारों में शांडिल्य (शिष्य) की भुमिका में अगस्त्य हार्दिक नागदा, गणिका की सखियाँ परिभृतिका और मधुकरिका क्रमशः रिया नागदेव और कृष्णा शर्मा, यमदूत के किरदार में भुवन जैन, सूत्रधार के किरदार में यश जैन, विदूषक के किरदार में कुशाग्र राजन भाटिया, रामिलक के किरदार में अरशद क़ुरैशी, मित्र के किरदार में हर्ष दुबे, गणिका की माता के किरदार में हर्षिता शर्मा, वैद्य के किरदार में मुकुल खाँडिया, सहयोगी वैद्य के किरदार में मोहम्मद तन्ज़ीम व माली के किरदार में दिवांश डाबी ने अपने अभिनय कौशल के दम पर दर्शकांे का मन मोह लिया।

नाटक का अनुकुलन, परिकल्पना और निर्देशन व संगीत रेखा सिसोदिया द्वारा किया गया। मंच पार्श्व में नृत्य संयोजन कृष्णेन्दु साहा, अन्जना कुंवर राव व उवर्शी कंवरानी ने किया। गायन स्वर श्रेया पालीवाल व हरिजा पाण्डे के सुर लगे। रूप सज्जा एवं वस्त्र विन्यास में योगीता सिसोदिया, मंच सज्जा व प्रबन्धन अशफाक नुर खान, प्रकाश निर्देशन व संचालन मोहम्मद रिजवान ने किया। मंच सहायक में मयुर चावला, श्रेया चावला, प्रमोद रेगर, कैलाश डांगी और रतन सेठिया ने सहयोग किया।

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