उदयपुर में मिलती हैं चींटी से भी छोटी मकडि़यां

 उदयपुर में मिलती हैं चींटी से भी छोटी मकडि़यां

अनूठी जैव विविधता को देखकर वैज्ञानिक कर रहे हैं शोध

अपनी झीलों व दुनिया की प्राचीनतम अरावली पर्वतमाला के साथ समृद्ध जैव विविधता के कारण दुनियाभर में अपनी खास पहचान बनाने वाली लेकसिटी उदयपुर में पर्यावरण वैज्ञानिकों को अब चीटीं से भी छोटी मकडि़यां नज़र में आई है, और अब वे इस नन्हें अनूठे जीव के बारे में ज्यादा जानकारी प्राप्त करने के लिए इस पर शोध कर रहे हैं।

उदयपुर में प्रवासरत भारतीय नेचर कंजर्वेशन फाउंडेशन के वैज्ञानिक डॉ. के.एस.गोपीसुंदर और स्वात्ति कित्तूर ने शहर के सेक्टर 14 में एक बगीचे से इन मकडि़यों को खोज निकाला है और अब इस पर वे विस्तृत जानकारी जुटा रहे हैं। पिछले महिने भर में उन्होंने अब तक इन मकडि़यों के रहन-सहन, आकार-प्रकार, भोजन व शिकार करने के तरीके आदि पर कई घंटों तक गहन अध्ययन किया है और इस पर जानकारी जुटाई है। डॉक्टर गोपी सुंदर की इस खोज पर मेवाड़-वागड़ के पर्यावरण प्रेमियों ने खुशी जताई है।

अजब-अनूठी होती है ये मकडि़यां:
यह बड़ी आकर्षक मकड़ी है जो चींटियों की तरह ही दिखती है और अपने शिकार के लिए चींटियों की नकल भी करती है। उनके पैरों की पहली जोड़ी एंटीना जैसी दिखती है और वह हर किसी को बेवकूफ़ बनाते हुए घूमती हैंकि कोई उन्हें ध्यान से नहीं देख रहा है। उन्होंने बताया कि इस समूह की सैकड़ों प्रजातियां दुनिया में पाई जाती हैं और भारत में इन पर बहुत कम अध्ययन किया गया है।  
उन्होंने बताया कि ये मकडि़यां पूरी तरह चींटियों की कुछ प्रजातियों की तरह दिखती हैं। वे चींटियों के जुलूस में भी शामिल होती हैं और चींटियों से भोजन भी चुराती हैं। वे कुछ अन्य चींटियों को पकड़ने और उन्हें खाने के लिए चींटियों की कतार में भी शामिल हो जाती हैं।

शातिर शिकारी है ये मकडि़यां:
डॉ. गोपीसुंदर बताते हैं कि उनकी छह या आठ आंखें, विशेष रूप से उनके सिर के सामने की बड़ी दो आंखें, उन्हें मकडि़यों के रूप में पहचान दिलाती हैं। ये आसानी से दिखाई नहीं देती हैं और इनको देखने के लिए उनके करीब जाना जरूरी होता है। डॉ. गोपीसुंदर ने बताया कि इनके अध्ययन के दौरान जब उन्होंने इस मकड़ी का फोटो क्लिक किया तो देखा कि इस मकड़ी ने चीनी खाने की शौकीन बदबूदार चींटियों का पीछा किया और जल्दी से उन्हें अपने लंबे सामने के जबड़े से पकड़ लिया, और उनमें से भोजन बनाया।

उदयपुर के बगीचे बन सकते हैं इनके प्राकृतिक पर्यावास:
डॉ. गोपी सुंदर और स्वाति कित्तूर अब इन छोटी मकडि़यों का सावधानीपूर्वक दस्तावेजीकरण कर रहे हैं। वे बताते हैं कि अध्ययन दौरान पाया गया है कि ये बहुत तेज़ चलने वाली मकडि़याँ हैं और बहुत आम नहीं हैं। अगर कोई व्यक्ति इन्हें देखना चाहता है तो अपने बगीचे को कीटनाशकों से मुक्त रखें। उन्होंने बताया कि यह सुकूनदायी है कि उदयपुर शहर में कीटनाशक मुक्त बगीचे इन छोटे जीवों का घर बने हुए हैं और यह यहां की समृद्ध जैव विविधता की प्रतीक भी हैं। उन्होंने सुझाव दिया है कि शहर के प्रत्येक बगीचे में कम से कम कुछ छोटे पैच ऐसे छोड़े जाए जहां पर इस तरह के छोटे जीव पनप सके और यहां की जैव विविधता और अधिक समृद्ध हो सके।  

दुनिया भर में 50 हजार प्रजातियां की हैं मकडि़यां
डॉ. गोपीसंुदर बताते हैं कि मकडि़याँ बहुत आम हैं लेकिन कम ही लोग जानते हैं कि इन आठ पैरों वाले जीवों की दुनिया में लगभग 50,000 प्रजातियाँ हैं। स्वस्थ पारिस्थितिक तंत्र को बनाए रखने में मकडि़याँ बहुत महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वे शीर्ष शिकारी हैं। वे अन्य जानवरों का शिकार करते हैं और टिड्डे जैसे कीटों को नियंत्रण में रखने में मदद कर सकते हैं।

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