फतहसागर झील पर वेटलैंड नियम और सज्जनगढ़ अभ्यारण्य ईको सेंसिटिव ज़ोन के प्रतिबंध लागू

 फतहसागर झील पर वेटलैंड नियम और सज्जनगढ़ अभ्यारण्य ईको सेंसिटिव ज़ोन के प्रतिबंध लागू

उदयपुर. नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल की भोपाल बेंच ने उदयपुर की फतहसागर झील के संरक्षण से संबंधित याचिका पर सुनवाई करते हुए झीलों के इर्द गिर्द शोर प्रदूषण, प्रकाश ( लाईट) प्रदूषण तथा पूरे झील पारिस्थितिक तंत्र के संरक्षण पर अभूतपूर्व फैसला दिया है।
यह फैसला देश भर की झीलों की सुरक्षा व संरक्षण का मार्ग प्रशस्त करेगा। वहीं, झीलों के भीतर व किनारों पर तीव्र लाइटों के प्रदूषण प्रभाव पर पूरे देश के लिये लाईट प्रदूषण पर शीघ्र ही विस्तृत नियम व गाइड लाइन बनेंगे।
उदयपुर के झील विशेषज्ञ डॉ अनिल मेहता द्वारा पर्यावरण विधिवेत्ता भाग्यश्री पंचोली के सहयोग से दायर इस याचिका के एडवोकेट मैत्रेय पृथ्वी राज घोरपाडे है।

प्रधिकरण की जस्टिस सुधीर अग्रवाल तथा विशेषज्ञ डॉ अफरोज अहमद की बेंच ने फतहसागर झील के पारिस्थितिक तंत्र पर हो रहे आघातों के मामले पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट के बालाकृष्णन एवं अन्य बनाम भारत संघ के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि राज्य सरकार यदि किसी झील, तालाब को वेटलैंड के रूप में अधिसूचित नहीं भी करे तब भी यदि वह झील, तालाब भारत सरकार के वेटलैंड एटलस में उल्लेखित दो लाख पंद्रह हजार वेटलैंड में सम्मिलित है तो उसे राज्य सरकारों को वेटलैंड संरक्षण नियम 2017 की धारा 4 के प्रावधानों के अनुसार संरक्षित करना होगा।

इस निर्णय से फतह सागर सहित पिछोला, बड़ी, उदयसागर, जयसमंद सहित राज्य की सभी झीलों को अब वेटलैंड संरक्षण नियम की धारा 4 का प्रावधान व प्रतिबन्ध के तहत संरक्षित करना होगा।
फतहसागर के संबंध में प्राधिकरण ने राजस्थान राज्य वेटलैंड प्राधिकरण को झील के आस पास के केचमेंट के उस प्रभाव क्षेत्र, जोन ऑफ़ इन्फ्लूएंस का निर्धारण करने के निर्देश दिए हैं.
इसमें होने वाली गतिविधियों का झील के पारिस्थितिकी तंत्र तथा पारिस्थितिकी सेवाओं पर विपरीत असर पड़ सकता है। प्राधिकरण ने इस प्रभाव क्षेत्र को वेटलैण्ड नियमो के तहत संरक्षित करने को कहा है। हरित प्राधिकरण ने कहा कि सज्जनगढ़ इको सेंसिटिव ज़ोन के लिए निर्धारित नियम फतहसागर झील व उसके प्रभाव क्षेत्र पर लागू होंगे।

फैसले में कहा गया है की इस तथ्य के बावजूद कि सज्जनगढ़ वन्यजीव अभयारण्य का इको सेंसिटिव जोन में फतहसागर झील तथा इसके ‘प्रभाव क्षेत्र’ का हिस्सा आता है, राजस्थान के प्रमुख सचिव, पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन, प्रधान मुख्य वन संरक्षक, वन्यजीव और सभी सहायक अधिकारियों की जिम्मेदारी है कि वे फतहसागर व इसके प्रभाव क्षेत्र का इको सेंसिटिव जोन के प्रावधानों के अनुसार संरक्षण करे तथा तुरंत इस क्षेत्र के लिये वन्यजीव अभयारण्य अधिसूचना जारी करे।

राज्य वेटलैंड अथॉरिटी फतहसागर झील के पिछले दस वर्षों के उच्चतम भराव तल ( एचऍफ़एल ) के औसत स्तर से पचास मीटर तक की दूरी में नाव घाटों को छोड़कर कोई भी स्थायी प्रकृति का निर्माण प्रतिबंधित करना होगा। झील व प्रभाव क्षेत्र में अतिक्रमण व गैर जलाशय भू रूपांतरण नहीं किये जा सकेंगे. ठोस कचरा, इलेक्ट्रोनिक कचरा व सीवरेज, गंदे पानी के प्रवेश व अवैध शिकार पर प्रतिबंधित रहेगा।

हरित प्राधिकरण का फैसला झील क्षेत्रों में प्रकाश प्रदूषण के संबंध में सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। याचिकाकर्ता अनिल मेहता, पर्यावरण विधिवेत्ता भाग्यश्री पंचोली तथा वकील मैत्रेय पृथ्वी राज घोरपाडे ने याचिका में प्रकाश प्रदूषण के दुष्प्रभावों पर वैज्ञानिक लेखों को प्रस्तुत किया था।

प्राधिकरण ने इस पर कहा कि इसमें कोई विवाद नहीं है कि आज तक भारतीय परिस्थितियों के संदर्भ में प्रकाश प्रदूषण के संबंध में कोई प्रमाणित जांच या शोध नहीं किया गया है और कम से कम किसी को रिकॉर्ड पर तो नहीं रखा गया है। इसमें संदेह नहीं किया जा सकता है कि कुछ परिस्थितियों में उच्च तीव्रता वाली रोशनी वन्यजीवों और विभिन्न श्रेणियों की अन्य प्रजातियों और प्रकृति के लिए भी हानिकारक हो सकती है।

लेकिन इस पहलू पर विस्तृत अध्ययन की आवश्यकता है एवं उचित दिशानिर्देश/विनियम तैयार किए जाने की आवश्यकता है। प्राधिकरण ने भारत सरकार के पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन तथा विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय को निर्देश दिया कि वो ‘प्रकाश प्रदूषण’ के मुद्दे पर अपेक्षित अध्ययन करने और भारतीय संदर्भ में ऐसे प्रदूषण को विनियमित करें व आवश्यक प्रावधान बनायें।

प्राधिकरण ने याचिका पर दिए निर्देशों की अनुपालना के लिए पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन, राजस्थान राज्य वेटलैंड प्राधिकरण, राजस्थान राज्य प्रदुषण नियंत्रण मंडल, जिला कलेक्टर, नगर निगम उदयपुर को आगामी 15 नवम्बर तक सेंट्रल ज़ोन भोपाल बेंच में अनुपालन रिपोर्ट दाखिल करने के निर्देश दिए हैं।

Related post