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नाटक ‘दुल्हन एक पहाड़ की’ से हुआ तीन दिवसीय अर्बुद नाट्य महोत्सव का आगाज़

 नाटक ‘दुल्हन एक पहाड़ की’ से हुआ तीन दिवसीय अर्बुद नाट्य महोत्सव का आगाज़

नाट्यांश सोसाइटी ऑफ ड्रामेटिक एंड परफोर्मिंग आर्ट्स के कलाकारों द्वारा तैयार नाटक ‘दुलहिन एक पहाड़ की’ के मंचन के साथ तीन दिवसीय अर्बुद नाट्य महोत्सव का आग़ाज़ हुआ। यह नाट्य महोत्सव माउंट आबू के प्रशासन और नगर पालिका माउंट आबू और गितांजलि ट्रस्ट के संयुक्त तत्वावधान से आयोजित हो रहा हैं।

इसाबेल एंड्रूस द्वारा मूलतः अंग्रेज़ी मे लिखित और मृदुला गर्ग द्वारा अनुवादित नाटक ‘दुल्हन एक पहाड़ की’ एक ऐसी लड़की पर आधारित है, जो पहाड़ों पर रहती है और जो कभी बंदिशों मे नहीं रही। मगर शादी के बाद घर कि बंदिशों और पंपरायें उसे बंधना चाहती है। समय के साथ वो इन सभी बन्धनों को अपनाने के साथ साथ अपने दृढ़ निश्चय, इच्छाशक्ति और मजबूत विचारो के बल पर वो बदलाव लाती है।

यह नाटक आज के समय से लगभग 65 साल पुराना होने के बावजुद, आज भी उतना ही प्रासंगिक है, जितना उस समय था। बंधन हमेशा से ही औरतो पर ही रखे जाते है फिर चाहे वो समाजिक हो, पारिवारिक हो या व्यक्तिगत। इन सभी बन्धनों के होने के बाद भी समय के बदलाव के साथ वैचारिक बदलाव होने लगता है और असे हर बदलाव में कई सारी अच्छी बातें निहित होती है।

नाटक एक नयी दुल्हन और उसके द्वंद पर आधारित है, जो आजाद ख्याल, खुशमिजाज और नादान है। दुल्हन की परवरिश खुले माहौल में हुयी है जहां उसे कुछ भी करने और अपनी तरह से जिंदगी जीने की पूरी आजादी थी। दुल्हन जब पहली बार अपने ससुराल मे प्रवेश करती है, तो अंधेरे की वजह से उसको घुटन महसूस होती है। इस घुटन से बचने के लिये जब वो दरवाजे और खिड़की खोलकर रोशनी को भीतर लाने का प्रयास करती है, तो माँ और बूढ़ी दादी उसे मना कर देते है। वो कहते हैं कि आज तक इस घर मे ऐसा नहीं हुआ इसलिए आगे भी नहीं होगा। घरवाले उसे रीति रिवाजों में बांधने की, परिवार और पति तक सीमित रखने की कोशिश करते है। दुल्हन धीरे-धीरे खुद को नए परिवेश मे ढ़ालती है, नए घर के तोर तरीको और परम्पराओ को अपनाती है लेकिन खुद के ‘स्व’ और ‘अस्तित्व’ को बर्करार रखते हुये। अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति और मजबूत विचारों के बल पर बन्दिशों के होते हुए भी घर में बदलाव लाती है। उसे इस बात का डर नहीं है की लोग क्या कहेंगे। उसके हाथ में एक किताब है और एक संकल्प है, रोशनी का।

संयोजक अमित श्रीमाली ने बताया कि इस नाटक का निर्देशन रेखा सिसोदिया ने किया है एवम्‌ सह निर्देशक मोहम्मद रिज़वान मंसूरी रहे। मंच पर कलाकारों में दुलहिन के किरदार में आस्था नागदा, दादीजी के किरदार में निधि पुरोहित, माँ के किरदार में स्वयं रेखा सिसोदिया और पड़ोसन के किरदार में उर्वशी कवंरानी ने अपने अभिनय से नाटक का भावपूर्ण सन्देश दर्शकों तक पहुँचाया। मंच पार्श्व में नाटक में संगीत संचालन भुवन जैन, प्रकाश संयोजन और संचालन अशफ़ाक नूर खान, रूप सज्जा योगिता सिसोदिया और मंच सहायक में अगस्त्य हार्दिक नागदा एवम्‌ यश शाकद्वीपीय का सहयोग प्राप्त हुआ।

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