कभी अखबार बाँटते थे, फिर उसी अखबार के नेशनल फ़ोटो जर्नलिस्ट बने ताराचंद गवारिया

 कभी अखबार बाँटते थे, फिर उसी अखबार के नेशनल फ़ोटो जर्नलिस्ट बने ताराचंद गवारिया

बचपन शरारतो में बीता और जवानी अल्हड़पन में, कभी कैरियर को ले कर सीरियस नहीं हुए, पर अपने मकसद से भी नहीं भटके, तभी आज एक कामयाब फोटो जर्नलिस्ट (Photo Journalist) के रूप में जाने जाते है दैनिक भास्कर नेशनल न्यूज़ रूम के स्पेशल फोटो जर्नलिस्ट ताराचंद गवारिया.

उदयपुर के ताराचंद की ज़िन्दगी में कई उतार-चढ़ाव आये, पर इन्होने अपने जज्बे के दम पर हर चुनौतियो का सामना किया. कभी न्यूज़ पेपर हॉकर बन जिस अखबार को घर-घर पहुचाने का काम करते थे, एक दिन उसी अखबार के दिग्गज फ़ोटो जर्नलिस्ट बने ताराचंद की ज़िन्दगी आज के युवाओ के लिए प्रेरणास्त्रोत है.

ताराचंद गवारिया (Tarachand Gawariya) के जीवन के कुछ अहम पहलु आपके समक्ष

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बचपन

आयड़ गाँव में ताराचंद का परिवार रहता था, वही उनका जन्म हुआ. उनके 3 भाई और 4 बहने है. ताराचंद बताते है कि उनका बचपन मुश्किलों वाला था पर फिर भी कोई टेंशन नहीं था.

वे कहते है, “क्रिकेट से लेकर गिल्ली डंडा और कंचो से लेकर माचिस की ताश तक वो सारे खेल जो उस समय खेले जाते थे, मैने खेले. पढ़ाई में ज्यादा इंटरेस्ट नहीं था, जैसे तैसे स्कूल फिर कॉलेज पास किया”. वे बताते है, “मैंने 10वी थर्ड-डिवीज़न वह भी बाय-ग्रेस पास की थी और फिर भी घर वालो ने मिठाइयाँ बांटी. खेर उसके बाद BA में 64%, जर्नलिज्म में PG डिप्लोमा में 69% और बीएएड में 72% अंक हासिल किये”

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करियर की शुरआत

ताराचंद कहते है, वैसे तो मेने छोटे- मोटे कई काम किये, यहाँ तक कि तीन चार साल तक 450.रु महीने पर न्यूज़ पेपर भी बांटे.फिर भी यदि कैरियर की बात करे तो, शुराआत तब हुई जब मै अखबार में छपे फ़ोटो के नीचे फोटोग्राफर का नाम देख खुद फोटोग्राफर बनने का सपना देखने लगा था, कामकाज कुछ ज्यादा था नहीं, न ही घर वालो को मुझसे कोई ख़ास उम्मीद थी, पर जब मैने फोटोग्राफी में रूचि दिखाई तो बड़े भाईसाहब ने अपने मित्र रिषभ जैन के साथ रख दिया जो खुद उस समय भास्कर में फोटो जर्नलिस्ट थे तो सोचा कि शायद कोई बात बने.

और हुआ भी वही, कैमरा हाथ में आया तो फोटो भी खीचने लगा, भास्कर के ऑफिस भी जाने लगा, फ्रीलान्स फोटोग्राफर के तौर पर एक फोटो के 25.रूपये मिलते थे, जितने फोटो छपते उतने पैसे मिलते और इस तरह महीने में 800 तो कभी 1000.रूपये मिल जाते.

तब तक भी मैं एक फोटोग्राफर ही था, फोटो जर्नलिस्ट नहीं. मुझे वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफी का भी शौक था पर रुझान खबरों को कैमरे में कैद करने की तरफ हो रहा था.

भास्कर के साथ शहर के कई और दैनिक अखबारों के लिए फ्रीलांस फोटोग्राफी भी करने लगा, कुछ समय बाद दैनिक भास्कर को जब मेरा काम पसंद आया तो मुझे नौकरी की ऑफर दे दी और 2005 से भास्कर के साथ जुड़ा हुआ हूँ.

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टर्निंग पॉइंट

2013 में इलाहाबाद महाकुंभ को कवर करने के लिए भेजा गया, यह उनके लिए एक ग्रेट अपोर्चुनिटी साबित हुआ.

ताराचंद बताते है कि, “मैं कभी भी, किसी भी समय, कही भी जाने के लिए तैयार रहता हूँ, यह फोटो जर्नलिस्ट की पहचान भी है और ज़िम्मेदारी भी. उदयपुर से बाहर कभी जाने का मौका नहीं मिला था और जब मिला तो मैं तुरंत रेडी हो गया”.

“13 दिन के उस महाकुंभ कवरेज ने मुझे मेरी प्रोफेशनल लाइफ में बहुत बड़ा एक्सपोज़र दिया, कई नामी पत्रकारों और फोटो जर्नलिस्ट के साथ काम करने का मौका मिला उनमे से एक भारत के विख्यात फोटो जर्नलिस्ट श्री रघु राय थे.”

“एक और महत्वपूर्ण टर्निंग पॉइंट तब आया जब मुझे सूचना मिली कि, उदयपुर के समीप मावली गाँव में एक पैंथर ने गाँव वालो पर हमला कर दिया है, मैं तुरंत कवरेज के लिए निकल गया.”

“पैंथर ने हमारी गाडी पर 3 बार अटैक किया, एक बार तो वह गाडी में आगया और उसका पंजा बिलकुल मेरे सीने के करीब था पर मैं फोटो लेता रहा, सोच रहा था शायद यह मेरे जीवन की आखिरी फोटो हो.”

“इसी कवरेज के दौरान ही मुझे भास्कर के NNR यानी नेशनल न्यूज़ रूम में काम करने का ऑफर आया जिसे मैने तुरंत मान लिया, न सैलरी पूछी न यह जानने की कोशिश की क्या करना होगा, बस मुझे वह सारे नेशनल असाइनमेंट दिखने लगे जिनके मैं सपना देखता था.”

“फिर देश के लगभग हर राज्य में काम किया, चार महाकुंभ कवर किये, भारत के बाहर श्रीलंका भी कवरेज के लिए गया.”

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यादगार फोटो

उज्जैन महाकुंभ: तेज बारिश में नागा साधुओ के बीच खड़ा एक हिरण “2016 में उज्जैन महाकुंभ कवर करते हुए भुखीमाता घाट पर नागा साधुओ की दीक्षा हो रही थी उसी दौरान तेज़ हवाओं और ओले के साथ बारिश होने लगी, वहां खड़े सभी फोटो जर्नलिस्ट इधर उधर भागने लगे, तभी मुझे नागा साधुओ के बीच एक हिरण दिखा जो तेज़ बारिश और ओलो के बीच स्थिर खड़ा था, मैंने उस पूरे घटनाक्रम को कैमरे में कैद कर लिया. उस तस्वीर को रघुराय सर ने अपनी मैगज़ीन के पहले पन्ने पर जगह दी.”

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यादगार कवरेज

सियाचिन में 7 दिन तक रह कर कवरेज करने का यादगार अनुभव ताराचंद बताते है कि नए साल पर भास्कर ने उन्हें सियाचिन से ग्राउंड रिपोर्ट के लिए भेजा. वह कवरेज यादगार इसलिए था क्यूंकि वह जाना खुद अपने आप में गौरव की बात है, जिन मुश्किलों को सामना कर सेना के जवान सियाचिन पर तैनात रहते है, दुश्मन से पहले वहां मौसम से लड़ना होता है, माइनस 40 से 64 डिग्री तापमान में मेने 7 दिन निकाले, वहाँ तमाम कठिनायों के साथ कवरेज करना एक चैलेंज था.

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नए फोटो जर्नलिस्ट और युवाओं के लिए सन्देश

एक सफल फोटो जर्नलिस्ट बनने के लिए सबसे बेसिक और ज़रूरी स्किल है “प्रजेंस ऑफ़ माइंड”

इसके बाद ज़रूरी है अपने आप को टेक्नोलॉजिकली अपडेटेड रखना, सोशल मीडिया के इस दौर में सबके पास मोबाइल है, हर घटना सोशल मीडिया पर पहले आजाती है इसमें एक फोटो जर्नलिस्ट के लिए चैलेंज है कि वह अपने अखबार को नया क्या देसकता है, इसलिए अपडेटेड रहे और अपने काम की दिनचर्या रोज़ बदले.

युवाओं में आजकल संयम की कमी देखने को मिलती है, उन्हें हर चीज़ जल्दी चाहिए, नाम, पैसा, कामयाबी, पर असल में ऐसा नहीं होता, जो समय लगा कर बढ़ता है वह स्थिर होता है और जो स्थिर होता है वह अटल होता है यही सफलता की कुंजी है.

आखिर बात, सबसे सफल वह है जो शोहरत पाने के बाद भी ज़मीन से जुडा रहे. ताराचंद Cameraman Academy नामक सोशल मीडिया ग्रुप पर मेंटर की भूमिका निभा रहे है, जहाँ लाखो फोटोग्राफर्स आपसे मार्गदर्शन लेते है.

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