शिल्पग्राम उत्सव : तीसरा दिन, मेवाड़ के रंगमंच पर ‘‘माझा महाराष्ट्र’’

 शिल्पग्राम उत्सव : तीसरा दिन, मेवाड़ के रंगमंच पर ‘‘माझा महाराष्ट्र’’

उदयपुर, 23 दिसम्बर। पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र की ओर से आयोजित दस दिवसीय शिल्पग्राम उत्सव के तीसरे दिन दोपहर में एक ओर जहां मुख्य द्वार के समीप छबड़ा के चकरी कलाकारों ने अपनी प्रस्तुतियों से लोगों का ध्यान खींचा वहीं मुक्ताकाशी रंगमंच पर राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र तथा केन्द्र शासित प्रदेश दमण की कलाओं का अनूठा संगम देखने को मिला। इसमें दमण के कलाकारों ने मछुआरा जाति की परम्परा का माछी नृत्य दिखाया जिसमें उन्होंने अपने परिवार में होने वाले उत्सवों की खुशी का इजहार किया।

इसी मंच पर गुजरात के वासावा आदिवासियों ने होली नृत्य का प्रदर्शन किया जिसमें जनजातीय होली के उत्सव को पुरूष व महिला कलाकारों ने श्रेष्ठ अंदाज में प्रदर्शित किया।

खुले रंगमंच पर ही महाराष्ट्र की कोंकणा जन जाति का आनुष्ठानिक नृत्य ‘‘सौगी मुखवटे’’ में देवीय शक्ति की उपासना के दृश्य को मोहक अंदाज में दिखाया।

प्रस्तुति में देवी की सवारी सिंह ने दर्शकों पर अपनी छाप छोड़ी। रंगमंच पर ही राजस्थान के लोक वाद्यों की सिम्फनी की ध्वनि सुन लोग मंच की दर्शक दीर्घा की ओर खिंचे चले आये व राजस्थानी संगीत का आनन्द उठाया।

मुक्ताकशी रंगमंच पर सबसे आकर्षक और मन भावन प्रस्तुति रही गुजरात के सिद्दि कलाकारों की। जिन्होंने अपनी परम्परा के अनुसार बाबा गौर की उपासना की परंपरा को दर्शाते हुए दर्शकों में उत्साह का संचरण किया।

शाम को दर्पण सभागार में महाराष्ट्र की कलाओं का प्रदर्शन दर्शकों द्वारा भरपूर सराहा गया।

यहां कोल्हापुर के चन्द्रकांत पाटिल व उनके साथियों ने पहले शिवाजी महाराज के जीवन से जुड़ प्रसंग में उनके राज्याभिषेक को गेय शैली में प्रस्तुत कर मराब्ी जोश और खरोश का बोध करवाया।

कार्यक्रम की शुरूआत गणपति वंदना से हुई जो न केवल महाराष्ट्र अपितु पूरे भारत की परंपरा है।

इसके बाद नृत्यांगनाओं ने लावणी नृत्य की प्रस्तुति से दर्शकों को रिझाया।

लावणी तमाशा में नर्तकियों की आंगिक भंगिमाएं लयकारी के साथ उत्कृष्ट बन सकी। इसके बाद सौंगी मुखवटे की प्रस्तुति को दर्शकों द्वारा सराहा गया। इसके अलावा दर्पण सभागार में ही राजस्थानी फोक एन्सेम्बल की भी प्रस्तुति हुई।

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