फोबिया के कारण और इससे निजात

 फोबिया के कारण और इससे निजात

डॉ सुषमा तलेसरा द्वारा

अक्सर बच्चों को बचपन में माता-पिता द्वारा कुछ डर दिखाया जाता है जैसे अगर तुम पढ़ाई  करो या खाना खा लो नहीं तो बाबा आ जाएगा। कई बार छोटे बच्चों को डरावनी पिक्चर दिखा देते हैं। कभी अनायास ही दंगे या तलवारबाजी छोटी आयु में देख ली जाती है। ऐसी छोटी बड़ी बातें बच्चे के मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव छोड़ सकती हैं। ऐसे डर स्थाई रूप से अचेतन मन में बैठ जाते हैं। हो सकता है बच्चा कुछ समय बाद घटना भूल जाए पर डर अचेतन मन में बैठा रहता है।

एक बच्चे को पढ़ाई के लिए बार-बार यह कहा जाता था कि पढ़ाई नहीं करोगे तो तुम्हें हॉस्टल में डाल देंगे। वह बालक हॉस्टल क्या है यह तो नहीं जानता है पर उसे यह जरूर समझ में आ जाता है कि हॉस्टल कोई ऐसी जगह है जहां प्रताड़ित किया जाता है।  जब महाविद्यालय में वह बच्चा पहुंच जाता है और हॉस्टल जाना पड़ता है तो उसके लिए यह स्थिति बहुत ही असहज हो जाती है, यहां तक की हॉस्टल पर जाने के नाम पर वह डिप्रेशन में आ जाता है।

 डर सबकी प्रकृति में पाया जाता है जो सामान्य स्थिति है। पर कभी-कभी कुछ लोगों में किसी वस्तु, परिस्थिति या क्रिया  के प्रति अस्वाभाविक रूप में, अत्यधिक डर व घबराहट होती है, वास्तव में वे परिस्थितियां इतनी खतरनाक नहीं होतीं हैं जितना उनको डर लगता है। ऐसी परिस्थिति में  इस तरह के डर को फोबिया कहते हैं। सबसे बड़ी बात ऐसे डर अकारण और अतार्किक होते हैं।

फोबिया के कारण व्यक्ति को पता नहीं होते हैं, पर कारण अचेतन मन की गहराई में छिपे होते हैं।

फोबिया सामान्यतया बाल्यावस्था में विकसित हो जाते हैं पर स्पष्ट रूप से 15 साल की उम्र के बाद  दिखाई देने लगते हैं।

हाइड्रोफोबिया ग्रस्त  लोगों को पानी से अत्यधिक डर लगता है। वे किसी तालाब के पास खड़े नहीं हो सकते, बहती नदी से बहुत दूर खड़े होंगे ,उस समय उनमें बहुत बेचैनी और घबराहट स्पष्ट देखी जा सकती है। तैराकी सीखने की बात तो वो सोच ही नहीं सकते हैं।

 जूफोबिया से ग्रस्त लोगों को पालतू पशुओं से भय लगता है। सबसे बड़ी बात है कि यदि उनको पालतू कुत्ते से डर लगता है तो यह डर अन्य पशुओं पर भी लागू होने लगता है जैसे वह बिल्ली से भी डरने लगेंगे।  कई बार तो कुत्ते, बिल्ली या फर वाले खिलौनों से भी वे दूरी बनाते हैं।

एक्रोफोबिया ग्रस्त लोग ऊंचाई से डरते हैं।  बहुत ऊंची बिल्डिंग या ऊंचे पहाड़ से नीचे देखने पर उनके ह्रदय की धड़कन बढ़ जाती है ,बहुत ज्यादा घबराहट व बेचैनी होती है तथा चक्कर आने लगते हैं।  एरो फोबिया ग्रस्त लोग हवाई जहाज में बैठने में  अत्यधिक डर महसूस करते हैं। कई बार हवाई यात्रा के दौरान मौसम खराब होने पर जहाज अत्यधिक ऊपर नीचे हिलता है, ऐसे में कुछ यात्री हवाई यात्रा से भयभीत हो जाते हैं। भविष्य में हवाई यात्रा के प्रति स्थाई डर बैठ जाता है।

वहीं कुछ लोग ऐसे हैं जिन्हें बंद जगह में घबराहट व बेचैनी होती है। ऐसे लोग छोटे से कमरे में या बंद लिफ्ट में बेहद डरते हैं और इनको प्रयोग करने से बचते हैं। ऐसे डर को क्लस्ट्रोफोबिया कहते हैं।

कुछ लोग भीड़ भाड़ या लोगों के बीच में अपने आप को बहुत असहज महसूस करते हैं। यहां तक कि लोगों के बीच में बोलने या बात करने में भी उन्हें डर लगता है। ऐसे डर को सोशल फोबिया कहते हैं। एक अध्ययन के अनुसार सार्वजनिक स्थल पर बोलने का डर विश्व में 75 प्रतिशत लोगों में पाया जाता है।

कुछ लोगों को खुली जगह से डर लगता है। खुली जगह पर वे अकेले नहीं जा सकते हैं। अकेले जाना पड़ जाए तो वे चिल्लाने लगते हैं। ऐसे डर को एग्रो फोबिया कहा जाता है।

कीड़े-मकोड़े एवं मकड़ी से डर बहुत लोगों में पाया जाता है।पुरुषों की तुलना में महिलाओं में ज्यादा पाया जाता है। ऐसे डर को अरकोनो फोबिया कहते हैं।कुछ लोग सड़क पार नहीं कर सकते हैं।सड़क पार करने में बेहद बेचैनी,घबराहट महसूस करते हैं।उपरोक्त फोबिया के अतिरिक्त भी कई तरह के फोबिया पाए जाते हैं

फोबिया के कारण

फोबिया ग्रस्त व्यक्ति से यदि पूछा जाए कि किसी विशेष वस्तुओं से उन्हें इतना डर क्यों लगता है तो इसका कारण वह बताने में असमर्थ होते हैं। वे तो बस इतना जानते हैं कि उन्हें उस विशेष वस्तु से डर लगता है। इसीलिए फोबिया को अकारण डर कहा जाता है।

वास्तव में डर के कारण होते हैं। यह कारण आनुवंशिक तथा पर्यावरण जनित हो सकते हैं। माता-पिता से भी यह डर संतानों में आ सकता है। बचपन में  माता-पिता में  जो डर देखा है बालक भी उस परिस्थिति से डरने लगता है। माता- पिता या भाई- बहनों में किसी जानवर से अत्यधिक डरता है तो देखते देखते बच्चे के मन में भी यह भाव आ जाता है कि यह कोई खतरनाक डरावनी चीज है।

कई बार माता-पिता अतिथियों के सामने बच्चे को सहज नहीं रहने देते हैं एवं अनावश्यक कविताएं या  अन्य कुछ बोलने का आग्रह करते हैं। इससे बच्चे में धीरे-धीरे सोशल फोबिया विकसित होने लगता है।

इससे भी बड़ा कारण है शैशवास्था या बाल्यावस्था में बालक को किसी ऐसी घटना का सामना करना पड़ा है या ऐसी डरावनी कहानी सुनी या किसी चलचित्र के माध्यम से किसी चीज का डर अचेतन मन में बैठ गया जो कि अचेतन मन से बाहर नहीं निकल रहा है और लगातार डर का कारण बना हुआ है।

उसके मन से वह घटना, कहानी, चलचित्र तो विस्मृत हो जाती हैं पर डर बरकरार रहता है। जैसे बचपन में उसने कोई सड़क दुर्घटना देखी, समय के साथ दुर्घटना तो भूल गया पर सड़क पार करने का डर उसके मन में सदा के लिए बैठ गया। किसी चलचित्र में पांचवी मंजिल से किसी को गिरते देखता है, उसके मन में ऊंचाई का डर बैठ जाता है। चलचित्र के बारे में समय के साथ भूल जाता है पर ऊंचाई का डर हमेशा के लिए घर कर जाता है।

बालक ने बचपन में कुत्ते द्वारा बालक को या उसके परिजन या दोस्त को काटते हुए देख लिया तो यह घटना उसके अचेतन मन में डर के रूप में स्थाई बैठ जाती है। कुत्ते के काटने की घटना समय के साथ भूल जाता है पर कुत्ते और मिलते-जुलते अन्य जानवरों के प्रति डर स्थाई रूप से बैठ जाता है।

फोबिया से छुटकारा

 एक बच्चा यदि ऊंचाई से डरता है और उसके विद्यालय में तीसरी मंजिल पर उसका कक्षा कक्ष है, अपनी कक्षा में जाने से डरेगा तो कैसे समायोजन हो पाएगा। माता पिता को प्रारंभ में अपने साथ बच्चे को कक्षा कक्ष तक पहुंचाना चाहिए और उसके मन से डर निकालने का प्रयास करना चाहिए। एक  छोटी बच्ची जब अकेले लिफ्ट से नीचे उतर रही थी। अचानक बिजली चली गई और करीब 10 मिनट तक वह लिफ्ट में बंद रही। बहुत चिल्लाई, रोई पर किसी ने उसकी आवाज नहीं सुनी ।इस घटना से उसके मन में लिफ्ट के प्रति भय बैठ गया । काफी समय तक वह लिफ्ट में जाने से डरती रही, जबरदस्ती अगर लिफ्ट में लेकर गए तो चिल्लाने लगती थी। सामान्य जिंदगी में उसके लिए यह एक मुश्किल घड़ी थी।

विशेषज्ञ ने उससे गहराई में बात की , लिफ्ट से जाने आने में मदद की (एक्सपोजर थेरेपी), तथा  समझाया कि कभी भी लिफ्ट में जाते वक्त बिजली बंद हो जाए  या लिफ्ट खराब हो जाए तो मोबाइल से सूचित किया जा सकता है। उसे समाधान के कई रास्ते बताए। धीरे-धीरे बातचीत के माध्यम से उसके मन से डर निकालने के कई प्रयास किए, तब जाकर वह लिफ्ट को सहज रूप से प्रयुक्त करने लगी।

ज्यादातर फोबिया ठीक किए जा सकते हैं। फोबिया  ठीक करने के लिए विशेषज्ञों की मदद ली जा सकती है जो डर का भली-भांति प्रबंधन करने में मदद कर सकते हैं। फोबिया से छुटकारा पाने के लिए एक्सपोजर थेरेपी व कॉग्निटिव बिहेवियर थेरेपी सबसे ज्यादा सफल हैं। एक्सपोजर में फोबिया से छुटकारा पाने में व्यक्ति की इच्छा शक्ति और दृढ़ संकल्प शक्ति का भी बहुत बड़ा योगदान होता है। डर से मुक्ति प्राप्त करने के लिए स्वयं को तैयार करें, डर को हावी नहीं होने दें। धीरे-धीरे डर वाली परिस्थिति का सामना करने का प्रयास करें। जैसे यदि पानी से डर लगता है तो अपने माता-पिता ,भाई-बहन या दोस्त के साथ हाथ पकड़ कर पानी के आसपास जाने का प्रयास करें। फोबिया से छुटकारा पाने के लिए जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए वरना फोबिया और बढ़ने की संभावना हो सकती है।

कॉग्निटिव बिहेवियर थेरेपी के अंतर्गत खुलकर बातचीत एवं व्यक्ति के स्वप्नों का विश्लेषण कर उसके अचेतन मन में बैठे डर को बाहर लाने का प्रयास किया जाता है।

फोबिया के दुष्परिणाम

किसी भी तरह का फोबिया सामान्य कार्यों में बाधक सिद्ध होता है। यह एक तरह की दुश्चिंता है तथा फोबिया के कारण व्यक्ति कई बार अवसाद की स्थिति में चला जाता है। यदि फोबिया को नजरअंदाज किया तो यह स्थिति और बिगड़ती चली जाती है और सामान्य जिंदगी को अत्यधिक प्रभावित कर सकती है। इसका असर आपसी संबंधों पर भी पड़ता है। उम्र के साथ यदि उपचार नहीं किया तो बढ़ने की संभावना रहती है।

इस प्रकार परिजनों को अपने बच्चों में फोबिया को पहचानना चाहिए तथा उसके समाधान के लिए तुरंत प्रयास करना चाहिए। जितना जल्दी इसके लिए प्रयास किया जाएगा उतना समायोजन में मदद मिलेगी.

sushma talesra

आर्टिकल की लेखिका : डॉ सुषमा तलेसरा , मनोवैज्ञानिक, सेवानिवृत्त प्राचार्य ,विद्या भवन गोविंदराम सेक्सरिया शिक्षक महाविद्यालय, उदयपुर।

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