मानवता की सुगंध – रेड क्रॉस डे के उपलक्ष में (8मई)
मानवता एक एहसास है। एक वीडियो देखा था जिसमें एक वृद्ध चिड़िया जो उड़ने में अक्षम है, एक नन्ही चिड़िया भोजन ला ला कर वृद्ध चिड़िया के चोंच में डाल रही थी। मन में विचार आया आज इंसान को वृद्धाश्रम खोलने की आवश्यकता पड़ रही है, इंसान से ज्यादा इंसानियत इन पक्षियों और जानवरों में है। बंदर समूह में रहते हैं और यदि समूह में किसी बंदर की तबीयत खराब हो जाती है तो समूह के सारे बंदर खाना नहीं खाते हैं। कितनी आत्मीयता व संवेदना है इन बेजुबान पशुओं में।
प्रतिवर्ष रेड क्रॉस सोसाइटी 8 मई रेड क्रॉस डे के रूप में मनाती है। प्रतिवर्ष भिन्न-भिन्न थीम रखी जाती है, इस वर्ष की थीम है “बी ह्यूमन काइंड” अर्थात मानव दया या मानवीयता।
मानवता के लिए सिर्फ कुछ करने की प्रबल इच्छा शक्ति चाहिए, इसके लिए ना अधिक समय, ना धन आवश्यक है बल्कि सिर्फ मानव के प्रति गहरी संवेदना पर्याप्त है। हृदय व दृष्टि खुली होनी चाहिए, फिर मानव सेवा के लिए अवसर हीअवसर हैं। भीषण गर्मी में घर के बाहर ठेले वालों से सामान तो खरीदते हैं, यदि एक गिलास ठंडा पानी उनको पिला दें तो उनके कंठ के साथ दिल भी तर हो जाते हैं। निश्चित है यह कृत्य हमें भी एक सुखद अनुभूति देता है।
आज कई वृद्धजन एकाकी जीवन व्यतीत कर रहे हैं। दो क्षण उनकी बातें सुनना, किसी दवा से कम नहीं है। किसी उदास व निराश व्यक्ति की व्यथा सुनकर इतना कह देना मात्र कि आप चिंता ना करें हम हैं ना, आपका इतना भर कहना उसकी निराशा में एक आशा की ज्योति प्रज्वलित कर देता है। किसी मायूस के चेहरे पर मुस्कुराहट ला दीजिए,एक मिनट की मुस्कुराहट दिनभर सुकून देने के लिए पर्याप्त है।
आप चौराहे से गुजर रहे हैं, अचानक आपका ध्यान ऐसे व्यक्ति पर जाता है जो ठंड से कांप रहा है और सड़क के दूसरे पार जाने में असमर्थ सा है।आप उसे सड़क पार करवाने में मदद करते हैं या अपनी जैकेट उसे ओढ़ा देते हैं।सच माने आपको जैकेट देने का अफसोस नहीं होगा बल्कि ह्रदय आनंद से भर जाएगा।
कहने का आशय यह है कि यदि हम संकल्प कर लेते हैं कि प्रतिदिन कुछ मानव सेवा करनी ही है तो अवसर स्वत् ही मिलते चले जाएंगे। प्रतिदिन रात्रि में सोने के पूर्व आत्म अवलोकन कर लिया जाना चाहिए कि आज दिन भर में मानवता के लिए क्या कदम उठाए हैं। धीरे धीरे यह दिनचर्या का अभिन्न अंग बनता चला जाएगा और जिस दिन कोई भला कार्य अपने हाथ से नहीं होगा उस दिन बेचैनी महसूस होगी।
आजकल दुर्घटनाएं भी बहुत बढ़ गई है। किसी घायल को देख कर अनदेखा कर आगे निकल जाना संवेदनहीनता की पराकाष्ठा है।कम से कम एंबुलेंस के लिए फोन तो किया ही जा सकता है।हमारा छोटा सा प्रयास किसी को जीवनदान दे सकता है।
किसी व्यक्ति को हृदयाघात होने की स्थिति में तुरंत आइसोड्रील/ डिस्प्रिन उसके मुंह में दे देना या सीपीआर करना उसके लिए जीवनदान के समान है।
एक शिक्षक का अपने विद्यार्थी की पीठ थपथपा देना उसमें अनंत ऊर्जा उत्साह भर देता है। जो विद्यार्थी पढ़ाई छोड़ने का मानस बना चुका है, एक शिक्षक के छोटे से कृत्य से अपना विचार बदल देता है और पढ़ाई जारी रखता है।
एक युवा दिव्यांग लड़की रेल में सफर कर रही थी, इतने में एक बुजुर्ग ट्रेन में चढ़ा, उसे देखते ही दिव्यांग लड़की अपनी सीट से खड़ी हो गई और बुजुर्ग को बैठा कर मानवता का कर्तव्य पूरा किया।
एक छोटा बच्चा जो अपने माता-पिता से इस बात की जिद कर रहा था कि कल से मैं स्कूल दादी के साथ नहीं जाऊंगा क्योंकि दादी मुझे डांटती है तथा मेरे साथी भी मेरी मजाक बनाते हैं। माता पिता बच्चे को समझाते हैं कि दादी बहुत अच्छी है पर बच्चा अपने जिद पर अड़ा रहता है। शाम होते ही दादी को अकेले में देख कर बालक उनकी गोद में जाकर बैठ कर माफी मांगता है कि दादी मैंने झूठ बोला क्योंकि मुझे अच्छा नहीं लगता है कि आपके घुटने में दर्द होने के बावजूद ऐसी तेज धूप में आप मुझे लेने आती हो। बच्चे के इस झूठ में कितना बड़ा मानवता का पाठ छुपा हुआ है।
आज यह संसार मानवता के बल पर ही चल रहा है। कुछ उदाहरण अमानवीय कृत्य के देखने को मिलते हैं पर ऐसा नहीं कहा जा सकता है कि आज मानवता खत्म हो गई है। आज भी मानवीयता के बहुत अच्छे
उदाहरण देखे जा सकते हैं।
आइए हम भी संकल्प लें इस मानवता के यज्ञ में अपना कुछ योगदान दे सकें ताकि यह संसार स्वर्ग तुल्य बन सके और हर तरफ खुशहाली छा जाए, हर हृदय तृप्त हो।हमारे मानवता के लिए किए गए कृत्य ही हमारी उपस्थिति सुनिश्चित करते हैं, शरीर तो नश्वर है।
लेखक : डॉ सुषमा तलेसरा (उदयपुर)