पीएचडी के नए नियम लागू, 4 साल यूजी वाला भी कर पाएगा पीएचडी

 पीएचडी के नए नियम लागू, 4 साल यूजी वाला भी कर पाएगा पीएचडी
  • शोध पत्र प्रकाशन की बाध्यता समाप्त
  • गाइड बदलने के नए नियम पारित
  • बेकलॉग क्लियर करने के लिए एक सेमेस्टर की परीक्षाएं होगी विभागीय स्तर पर

उदयपुर। मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय की एकेडमिक काउंसिल की बैठक शनिवार को कुलपति प्रोफेसर आईवी त्रिवेदी की अध्यक्षता में आयोजित की गई। यूजीसी द्वारा लागू किए गए पीएचडी के नए नियमो को कुछ संशोधनों के बाद लागू कर दिए गए हैं। इसके साथ ही कोरोना व लोकडाउन के कारण पीछे चल रहा है यूजी व पीजी के एक सेमेस्टर की परीक्षाएं विभागीय स्तर पर आयोजित करने का निर्णय किया गया।

विश्वविद्यालय के प्रवक्ता डॉ कुंजन आचार्य ने बताया कि यूजीसी द्वारा लागू किए गए पीएचडी के नए नियमों को संशोधन के साथ डीन पीजी स्टडीज प्रोफेसर नीरज शर्मा ने पटल पर रखा जिसको अंगीकृत और स्वीकृत कर कर लिया गया। नए प्रावधानों के तहत अब प्रोफ़ेसर को 8 एसोसिएट प्रोफेसर को 6 तथा असिस्टेंट प्रोफेसर को 4 पीएचडी स्कॉलर आवंटित किए जाएंगे। इसके साथ ही टीएसपी क्षेत्र के लिए पहले से चला आ रहा एक सुपर न्यूमैरिक सीट का प्रावधान यथावत रखा गया है।

नई शिक्षा नीति के तहत बनाए गए नए नियमों में पीएचडी करने के लिए न्यूनतम 3 वर्ष और अधिकतम 8 वर्ष की सीमा तय की गई है। दिव्यांगों और महिलाओं के लिए यह छूट अधिकतम 10 साल तक मान्य रहेगी। नई शिक्षा नीति में किए गए प्रावधान में 4 साल वाले स्नातक इंटीग्रेटेड परीक्षा में 75 प्रतिशत अंक प्राप्त करने वाले विद्यार्थी भी अब पीएचडी में दाखिला ले पाएंगे। इसके साथ ही थीसिस में शोधपत्र प्रकाशन की बाध्यता को भी समाप्त कर दिया गया है। बैठक में अंगीकृत किए गए उक्त नियम भविष्य में रजिस्टर्ड होने वाले पीएचडी शोधार्थियों पर लागू होंगे।

एकेडमिक काउंसिल में पीएचडी शोध के दौरान गाइड बदलने के नियम में भी बदलाव कर नियम पारित किया गया। पहले विद्यार्थी की इच्छा या प्रशासन द्वारा तय किए गए नियमों के तहत विशेष परिस्थितियों में गाइड बदल दिया जाता था लेकिन अब यह नियम बनाया गया है कि गाइड बदलाव के बाद नए गाइड के साथ शोधार्थी को कम से कम 2 साल काम करना होगा। उसके बाद ही वह अपना शोध कार्य सबमिट कर पाएगा। नए गाइड का नाम भी डिपार्टमेंटल रिसर्च कमेटी के स्तर पर तय किया जाएगा।

इसके साथ ही एकेडमिक काउंसिल में यह भी तय किया गया कि कोविड-19 महामारी और 2 लोग डाउन के कारण विश्वविद्यालय में यूजी और पीजी की कक्षाएं व परीक्षाएं एक सेमेस्टर पीछे चल रही है। इसलिए यह तय किया गया कि एक मौजूदा सेमेस्टर की परीक्षा विभागीय स्तर पर करवाई जाएगी। विश्वविद्यालय के अब तक चले आ रहे प्रतीक चिन्ह (लोगो) में केवल विश्वविद्यालय का नाम ही दिखाई पड़ता है इसमें स्थान का नाम पता नहीं चलता। इसके साथ ही उसकी संरचना में भी समय के साथ बदलाव आता चला गया था। इसमें एकरूपता लाने के लिए प्रो एसके कटारिया, प्रो हेमंत द्विवेदी, डॉ अविनाश पंवार की एक समिति गठित की गई है जो लोगो को संशोधित एवं परिवर्द्धित रूप में प्रस्तुत करेगी।

20 दिसंबर को होने वाले दीक्षांत समारोह के लिए पिछले 1 वर्ष के पीएचडी शोधार्थियों, स्वर्ण पदक धारकों एवं चांसलर मेडल धारकों की सूची को भी स्वीकृति प्रदान की गई।

बैठक में रजिस्ट्रार छोगाराम देवासी, डिप्टी रजिस्ट्रार मुकेश बारबर, सामाजिक विज्ञान एवं मानविकी महाविद्यालय के अधिष्ठाता प्रोफेसर सीआर सुथार, विज्ञान महाविद्यालय के अधिष्ठाता प्रोफेसर सीपी जैन, वाणिज्य महाविद्यालय के अधिष्ठाता प्रोफेसर पीके सिंह, विधि महाविद्यालय की अधिष्ठाता डॉ राजश्री चौधरी, परीक्षा नियंत्रक डॉ राजेश कुमावत, विश्वविद्यालय संपदा अधिकारी राकेश जैन सहित सभी विभागों के विभागाध्यक्ष एवं अन्य प्रशासनिक अधिकारी उपस्थित थे।

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