शिक्षक शिक्षा पर तीन दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी प्रारंभ
देश की समय समय पर बनी शिक्षा नीतियों में निरंतरता देखने को मिलेगी । भाषा जरुर बदल गई है लेकिन लक्ष्य समान है । शिक्षक को मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण होना चाहिए। विद्यार्थी अपने शिक्षक का अनुसरण करके अपने आपको आकार देता है इसलिये व्यक्तित्व निर्माण मे शिक्षक की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है।
यह विचार प्रसिद्ध शिक्षाविद प्रो जे एस राजपूत ने विद्या भवन गोविंदराम सेकसरिया शिक्षक महाविद्यालय, उदयपुर में सोमवार से आरंभ हुई वर्तमान शिक्षक शिक्षा : लक्ष्य, चुनौतियां एवं संभावनाएं” विषयक तीन दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र मे व्यक्त किये
संगोष्ठी का आयोजन विद्या भवन तथा अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय बेंगलुरु के संयुक्त तत्वावधान मे किया जा रहा है ।
मुख्य वक्ता प्रो राजपूत ने महात्मा गांधी जी का संदर्भ देते हुए कहा कि यदि प्रत्येक व्यक्ति अपने कर्तव्यों का पालन करे तो विविध समस्याएँ समाप्त हो सकती है ।
अध्यक्षता विद्याभवन सोसायटी के अध्यक्ष अजय मेहता ने की। मेहता ने कहा कि शिक्षा समाज की प्रगति का महत्वपूर्ण माध्यम है । इसे व्यवसाय की अपेक्षा समाजिक सरोकार के रूप में देखा जाना चाहिए।
प्रो. ह्र्दयकांत दीवान ने संगोष्ठी के उदेश्यों को प्रस्तुत किया। स्वागत समन्वयक व प्राचार्य डॉ. फ़रज़ाना इरफान ने किया। संचालन डॉ.सन्तोष उपाध्याय व सावित्री राव ने किया । धन्यावद सह-समन्वयक डॉ. नैना त्रिवेदी ने दिया।
पहले दिनों के सत्रों मे शिक्षाविद निधि गुलाटी ने शिक्षक-शिक्षा में सिद्धान्त एवम प्रेक्टिस का सम्बंध विषय पर तथा स्मृति शर्मा ने सेवापूर्व शिक्षक शिक्षा व शिक्षा-शास्त्रीय सम्भावनाएं विषय पर विचार रखे । सत्र की अध्यक्षता प्रो साधना सक्सेना ने की।
दूसरे सत्र में अज़ीम प्रेमजी विश्वविद्यालय की निशा बुटोलिया ने राज्यस्तरीय अंग्रेज़ी भाषा का प्रशिक्षण कार्यक्रम व शिक्षको के व्यावसायिक विकास के निहितार्थ पर चर्चा की । विद्या भवन स्कूल प्राचार्य पुष्पराज सिंह राणावत ने सेवारत शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम के बदलते स्वरूप व चुनौतियों पर विचार रखे । सत्र की अध्यक्षता प्रो. एमपी शर्मा ने की।
तृतीय सत्र मे शिक्षक प्रशिक्षक कैसा हो विषय पर दिल्ली विश्वविध्यालय की राधिका मेनन व शिक्षको का अध्यापन कैसा हो विषय पर विद्या भवन सोसाइटी के शिक्षा सलाहकार प्रसून कुमार ने विचार रखे । इस सत्र की अधयक्षता ह्र्दयकांत दीवान ने की ।