आयड़ नदी में सीमेंट कंक्रीटिंग पर एन जी टी ने लिए कई महत्वपूर्ण निर्णय

 आयड़ नदी में सीमेंट कंक्रीटिंग पर एन जी टी ने लिए कई महत्वपूर्ण निर्णय
  • नदी प्रवाह को बाधित करने वाले कोई भी  कार्य नही होंगे
  • कुछ एक कार्यों को छोड़ नदी पेटे में कंही नही होगा सीमेंट कंक्रीट, आर सी सी का उपयोग
  • नदी के किनारों पर बहुमंजिला इमारत पर प्रतिबंध रहेगा

स्मार्ट सिटी लिमिटेड ने अंतिम सुनवाई से पूर्व मूलयोजना में किये आवश्यक संशोधन, अब संशोधित रूप में लागू होगी योजना

उदयपुर, 6 सितंबर,   आयड़ नदी के पांच किलोमीटर शहरी बहाव क्षेत्र के सुधार – सौंदर्यीकरण कार्य की  लगभग पिचहत्तर करोड़ की योजना में नदी पेटे में सीमेंट कंक्रीट के इस्तेमाल को लेकर एन जी टी न्यायालय में विचाराधीन याचिका पर एन जी टी न्यायालय ने फैसला दे दिया है।

यह याचिका झील संरक्षण समिति,  जरिये सचिव डॉ तेज राज़दान द्वारा दायर की गई थी। समिति की ओर से नई दिल्ली के एडवोकेट राहुल चौधरी ने न्यायालय में पक्ष रखा।

समिति से जुड़े नदी व झील विशेषज्ञ डॉ अनिल मेहता तथा पर्यावरण कानूनविद भाग्यश्री पंचोली ने बताया कि महत्वपूर्ण घटनाक्रम यह रहा कि याचिका पर अंतिम सुनवाई में स्मार्ट सिटी लिमिटेड ने स्पष्ट कर दिया कि आयड़ नदी में मध्य चेनल की साइड तथा पिचिंग की टो वॉल के बहुत आवश्यक कार्यों के अलावा नदी पेटे में कंही भी कंक्रीटिंग नही होगी।

स्मार्ट सिटी लिमिटेड ने अंतिम सुनवाई से पूर्व ही 23 अगस्त को केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण मंडल को लिखित में अपनी संशोधित योजना प्रस्तुत कर दी । संशोधित योजना के तहत अब नदी के बीच मे बनाई जा रही चेनल का पैंदा पक्का नही किया जाएगा तथा इस चैनल की दीवारों तथा कुछ स्थानों पर छोटी टो वाल के अलावा कंही भी आर सी सी का प्रयोग नही होगा। चैनल के अंदर नदी तल पर पत्थर की पिचिंग ही होगी ताकि भूजल रिचार्ज हो सके। पूरे नदी पेटे में कंही भी कंक्रीटीकरण नहीं किया जाएगा।  

नदी के किनारो की मजबूती के लिए गेबियन, पत्थर की चिनाई, कॉयर मैट और घास का प्रयोग होगा।  जो भी कार्य होंगे वे नदी प्रवाह की दिशा में होंगे। परियोजना में किसी भी तरह से आयड नदी के जल प्रवाह की मात्रा या दिशा को प्रभावित नहीं किया जाएगा। नदी सुधार पुनर्वास का स्तर नदी की प्राकृतिक प्रवाह सतह से नीचे रहेगा। 

संशोधित योजना के अनुसार पूर्व में सीमेंट कॉन्क्रीट आधार बनाकर उस पर 30 मीटर लंबाई में पत्थर की फर्शी जड़ाई तथा 30 मीटर घास की पट्टी का प्रावधान था। संशोधित योजना में पत्थर जड़ाई के स्थान पर पत्थर की पिचिंग होगी जिसमें सीमेंट कॉन्क्रीट का इस्तेमाल नही होगा। 

इस पत्थर कार्य की लंबाई भी आधी अर्थात तीस मीटर के स्थान पर पंद्रह मीटर ही रखी जायेगी। नदी में बनने वाले पथ ( वॉक वे) को भी ग्रेवल पत्थरों से बनाएंगे तथा इसमें कंक्रीट का इस्तेमाल नही होगा। नदी तल सुधार में भी मुख्यतया बोल्डर्स का इस्तेमाल होगा तथा सीमेंट इत्यादि का प्रयोग नही होगा।

मेहता तथा पंचोली ने बताया कि एन जी टी न्यायालय की जस्टिस शिव कुमार सिंह व विशेषज्ञ सदस्य डॉ ए सैंथिल वेल की बैंच ने इस संबंध में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण मंडल, केंद्रीय जल आयोग, केन्द्रीय पर्यावरण मंत्रालय, आई आई टी रुड़की की जॉइंट कमिटी द्वारा प्रस्तुत अनुशंसा को रिकॉर्ड पर लिया।

जॉइंट कमिटी ने स्मार्ट सिटी लिमिटेड की 23 अगस्त 2023 की संशोधित योजना को न्यायालय के रिकॉर्ड पर रखते हुए कहा कि कंक्रीटिंग से आयड़ नदी पर होने वाले दुष्प्रभाव तथा भूजल पुनर्भरण में होने वाली बाधा को देखते हुए पेटे में सीमेंट कंक्रीटिंग नही की जाए । साथ ही बीच मे बनाई जा रही चैनल का मध्य नदी भाग पक्का नही किया जाए ।

न्यायालय ने स्मार्ट सिटी लिमिटेड के स्वयं के द्वारा नियुक्त विशेषज्ञ डॉ एस के सिंह की अनुशंषा को भी  रिकॉर्ड पर लिया जिसमें विशेषज्ञ ने कहा कि चैनल के पैंदे में सीमेंट कंक्रीट, आर सी सी का  इस्तेमाल उचित नही है।

हरित न्यायालय के आदेश के अनुसार बीच की चैनल की साइड दीवारों व कुछ जगहों पर पिचिंग को सपोर्ट देने के लिए बनने वाली बहुत कम ऊंचाई की टो वाल को छोड़कर पूरे नदी पेटे में कंही भी सीमेंट कंक्रीट अथवा आरसीसी नही की जा सकेगी। जंहा मिट्टी ढीली है वंहा  भी स्थिरीकरण (मजबूती में वृद्धि) के लिए आरसीसी स्लैब के स्थान पर सूखे पत्थर के बोल्डर जैसी तकनीक का इस्तेमाल किया जाए।

एस टी पी से निकलने वाले पानी के उपचार में क्लोरीनीकरण के बजाय ओजोनीकरण किया जाए ताकि एस टी पी से निकलने वाले जल में घुलनशील ऑक्सीजन बढ़े। प्रस्तावित एनीकटों में  गेट का प्रावधान हो। नदी पेटे में व बिछी ट्रंक सीवर लाइन तथा नदी के किनारे के बीच वृक्षारोपण हो तथा किनारों पर खुदाई से गहराई नही बढ़ाये। न्यायालय ने कहा है कि नदी के किनारों पर बहुमंजिला इमारत पर प्रतिबंध रहेगा। नदी के बीच मे बनाई जा रही चेनल जिसका पैदा पक्का नही होगा और जिससे कि भूजल पुनर्भरण होता हो वह शहरी क्षेत्र की  11 किलोमीटर लंबाई में  बनाई जा सकती है।

विशेषज्ञ डॉ अनिल मेहता का सुझाव – नही लगाए कोनोकार्पस वृक्ष, फ्लड ज़ोन मार्किंग करवाये

नदी व झील विशेषज्ञ डॉ अनिल मेहता ने कहा कि यद्यपि एन जी टी के फैसले में न्यायालय ने समिति की कोनोकार्पस वृक्ष तथा फ्लड ज़ोन प्लानिंग संबंधित प्रार्थना पर सीधे कोई निर्देश नही दिए है लेकिन  स्मार्ट सिटी लिमिटेड को इन दोनों सुझावों पर अमल करना चाहिए।

कोनोकार्पस वृक्ष एक खतरनाक प्रजाति है जो आयड़ नदी की मूल प्रजाति नही है। यह पर्यावरण, भूजल व नागरिकों के स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह है। नदी किनारों पर स्थानीय प्रजाति के उन वृक्षों, झाड़ियों का रोपण किया जाए जो नदी गुणवत्ता व पर्यावरण सुधार में सहयोगी है ।

साथ ही फ्लड ज़ोन मार्किंग से नदी किनारों पर अतिक्रमण रूक सकेंगे। मेहता ने कहा कि स्मार्ट सिटी लिमिटेड को यह भी विश्वास दिलाना होगा कि नदी में बरसाती प्रवाह के दौरान आने वाली गाद, मिट्टी, कंकड़, पत्थर, गंदगी के चेनल में जमने उनकी लुढ़कन, रगड़ से 75 करोड़ के  कार्यों पर कोई विपरित प्रभाव नही होगा।

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