प्रवासी पक्षी “असली पर्यटक ” इनके रहवास, सहवास, भ्रमण क्षेत्र बढ़ाने पर आधारित हो पर्यटन नीति

 प्रवासी पक्षी “असली पर्यटक ” इनके रहवास, सहवास, भ्रमण क्षेत्र बढ़ाने पर आधारित हो पर्यटन नीति

उदयपुर, 22 जनवरी, पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा पर आधारित पर्यटन नीति ही सतत व स्थायी पर्यटन को सुनिश्चित कर सकती है।यह विचार रविवार को आयोजित झील संवाद मे व्यक्त किये गए।

संवाद मे झील विशेषज्ञ डॉ अनिल मेहता ने कहा कि “असली पर्यटक” कौन होते हैं, इस पर चिंतन व दृष्टि जरूरी है। झीलों के संदर्भ मे मेहता कहा कि हजारों मील दूर से अनेक मुश्किलों को सामना कर आने वाले पक्षी “असली पर्यटक” है। ये पर्यटक ही हमारे स्वास्थ्य व समृद्धि को बढ़ाते हैं। असली पर्यटक निरंतर आते रहे इसके लिए इनके ठहराव, सहवास तथा भ्रमण के स्थल विकसित व संरक्षित करने होंगे।

विडंबना यह है कि असली पर्यटकों की चिंता छोड़ केवल मनोरंजन, एशो आराम तथा नशे व अपसंस्कृति कार्यों के लिए आने वाले पर्यटकों के ठहराव, आनंद व भ्रमण के लिए पर्यटन योजना बन रही हैं। ऐसी नीति सुखकारी नही हो सकती।

झील विकास प्राधिकरण के पूर्व सदस्य तेज शंकर पालीवाल ने कहा कि होटलों का विस्तार झीलों के किनारों व जल ग्रहण क्षेत्र के पहाडों को खत्म कर रहा हैं। इससे देशी -प्रवासी पक्षियों के आवास नष्ट हो रहे है। झीलों का अस्तित्व संकट मे पड़ गया है।

गांधी मानव कल्याण समिति के निदेशक नंद किशोर शर्मा ने कहा कि झील क्षेत्र मे मिनरल वॉटर, शराब की खाली बोतलों, प्लास्टिक – पॉलीथीन का भारी कचरा है। आये दिन होने वाले समारोहों मे आतिशबाजी व तेज लाइटों का उपयोग हो रहा है। इससे पक्षियों व जलीय जीवों का जीवन खतरे मे पड़ रहा है।

पर्यावरण प्रेमी कुशल रावल व दिगंबर सिंह ने राज्य सरकार व जिला प्रशासन से आग्रह किया कि वे पर्यटन नीति को पर्यावरण अनुकूल रखे। नीति निर्माण मे पर्यावरणविदों की सलाह व सहभागिता को सुनिश्चित करे।

संवाद से पूर्व गंदगी से अटे पड़े बारीघाट पर श्रमदान कर झील सतह पर तैरती हुई शराब, पानी की बोतलें, पॉलीथिन, सड़ा गला घरेलू कचरा हटाया गया। श्रमदान में द्रुपद सिंह, दृष्टि कुमारी सहित स्थानीय नागरिक उपस्थित रहे।

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