जलाशयों का स्वास्थ्य एवं प्रवासी पक्षी
यदि आप उदास है, बोर हो रहे हैं, मन नहीं लग रहा है, या कुछ अवसाद के लक्षण नजर आ रहे हैं तो एक घंटा घने पेड़ों को निहार लीजिए। सुबह 6:00 बजे अमरूद के पेड़ों पर तोते बैठे चहचहा रहे हैं। वह अपने सामाजिकता के गुण को साकार करते हुए अपने साथियों को भी फल का आनंद लेने के लिए आमंत्रित कर रहे हैं। यह सब देख कर भी आपको क्रोध नहीं आएगा।
दूसरी तरफ एक पेड़ पर छोटी छोटी चिड़िया हैं, चिड़िया के बच्चे बहुत पतली ध्वनि निकालते हुए फुदक फुदक कर एक पेड़ से दूसरे पेड़ पर उड़ान भर रहे हैं। यकीन मानिए आपकी सारी उदासी फुर्र हो जाएगी मन में एक जोश और उल्लास भर जाता है।
जी हां प्रवासी पक्षी बहुत लंबी अनवरत यात्रा करके हमारी झीलों के पास कुछ महीनों के प्रवास पर आते हैं ।उनकी यह यात्रा किसी अजूबे से कम नहीं है। पक्षी प्रेमी इसका भरपूर आनंद भी उठाते हैं। आवश्यकता इस बात की है इन झीलों के पानी की गुणवत्ता बरकरार रखें। हमारी झीलें जल प्रदूषण के कारण जहरीली होती जा रही हैं, जिसका प्रभाव प्रवासी पक्षियों पर पड़ रहा है। कई झीलें ऐसी है जहां किसी वक्त प्रवासी पक्षी भरपूर संख्या में आते थे अब या तो उन्होंने उन झीलों से किनारा ही कर लिया है या बहुत कम संख्या में आते हैं।
यह बात निश्चित है कि जैव विविधता एवं परिस्थितिकी संतुलित रहेगी तब तक हमारा अस्तित्व है ।परिस्थितिकी असंतुलन की स्थिति हमारे जीवन को भी संकट में खड़ा कर देगी।
वैसे भी काफी देर हो चुकी है, अब बिना देरी के हमें इस ओर ध्यान देने की आवश्यकता है। सबसे पहली आवश्यकता इस खतरे की घंटी के प्रति हमारी जागरूकता। आज भी हम झील के किनारे बैठकर झील का आनंद लेते हैं, चाय की चुस्की एवं नाश्ता करते हैं और कचरा झील में डाल देते हैं।
क्यों हमारा अंतर्मन इसे रोकता नहीं है? कारखानों एवं फैक्ट्री से निकलने वाले जहरीले ,भारी धातुओं से युक्त जल को सीधे नदियों में डाल दिया जाता है जो अंतोगत्वा झीलों को प्रदूषित करने का बहुत बड़ा कारण है। सीवरेज का पानी भी सीधा नदियों में डाला जाता है। बहुत कम जगह सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट लगे हैं ,और जहां लगे हैं वह भी अपर्याप्त हैं। कई झीलों का तो अस्तित्व ही मिट चुका है, वहां बड़ी-बड़ी इमारतें खड़ी हो गई हैं। कुछ भूमाफिया झील को संकीर्ण करने में लगे हैं।
झील के किनारे अनेकानेक होटल एंड रेस्टोरेंट पैर पसार रहे हैं। इन होटलों से निकलने वाला गंदा पानी की झील में ही समाहित होता है। यह सब परिस्थितिकी संतुलन के लिए अच्छे संकेत नहीं हैं। हम अपने पैरों पर स्वयं कुल्हाड़ी मार रहे हैं।
अब समय आ गया है जब हर एक व्यक्ति को जागरूक होने की आवश्यकता है।हम स्वयं इन आद्र स्थलों को प्रदूषित होने से बचाएं तथा जहां भी लगता है कि गलत कार्य हो रहा है वहां चुप ना रहें, बल्कि झीलों को बचाने के लिए कदम उठाएं ।
यदि हम देख रहे हैं की रेस्टोरेंट के मालिक झील में कचरा डाल रहे हैं तो हमारी भी जिम्मेदारी है कि उन्हें ऐसा करने से मना करें और प्रशासन को अवगत करवाएं। राहगीरों को झील में कचरा डालते हुए देखते है तो उन्हें मना करें।
झीलें, तालाब ,नदियां स्वस्थ रहेंगे तो उसमें पनपने वाले मछलियां भी स्वस्थ रहेंगी जिन्हें प्रवासी पक्षी अपना भोजन बनाते हैं। प्रवासी पक्षियों की करीब ढाई सौ प्रजातियां ठंडे प्रदेशों जैसे उत्तरी अमेरिका, कनाडा ,रूस, अलास्का आदि क्षेत्रों से कई किलोमीटर की यात्रा करके आती हैं जो भिन्न भिन्न तालाब, नदी एवं झीलों को अपना विश्राम स्थल बनाती है।एक ही जगह पर भिन्न भिन्न प्रजातियां भी बिना एक-दूसरे को हस्तक्षेप किए आराम से रहती हैं।
ये पक्षी हजारों किलोमीटर की अनवरत यात्रा करके आते हैं और कुछ महीनों के ठहराव के बाद पुनः अपने मूल क्षेत्र में लौट जाते हैं अतः इन्हें स्वस्थ भोजन, स्वच्छ हवा व स्वच्छ पानी आवश्यक है जिससे यह पूर्ण स्वस्थ होकर पुनः यात्रा के लिए तैयार हो सके। ये पक्षी आसपास के खलिहानों की फसलों से हानिकारक कीड़ों को खाकर फसल को बर्बाद होने से बचाते हैं।
किन्तु फसलों पर छिड़के गए कीटनाशकों से इनकी प्रजनन क्षमता प्रभावित हो रही है, यही कारण है कि कई पक्षी विलुप्त होने की कगार पर हैं। ये कीटनाशक बरसात के मौसम में बहकर आसपास के तालाबों के पानी को भी प्रदूषित करते हैं अतः प्रवासी पक्षियों का भोजन ‘मछली’ व अन्य जलीय जीव भी इस प्रदूषित जल से प्रभावित हो रहे हैं।
यह प्रवासी पक्षी कई बीजों एवं कई जीवों के अंडों का प्रसार करने का भी काम करते हैं जिससे कि विभिन्न जीवों की प्रजातियां को आसपास के क्षेत्र में प्रसारित होने का अवसर मिलता है।
प्रवासी पक्षी हमारे पर्यटन को बढ़ाने में अहम् योगदान देते हैं। अतः यह प्रवासी पक्षी परिस्थितिकी संतुलन में अहम भूमिका निभा सकते हैं तो हम क्यों नहीं? हमारा दायित्व है कि हम इनके अतिथि गृह यानि तालाब, झीलों, नदियों आदि को स्वच्छ रखने में अपना योगदान दें।
डॉ सुषमा तलेसरा , मनोवैज्ञानिक, सेवानिवृत्त प्राचार्य ,विद्या भवन गोविंदराम सेक्सरिया शिक्षक महाविद्यालय, उदयपुर।