धरती मां के लिए बढ़ाए दो कदम

 धरती मां के लिए बढ़ाए दो कदम

धरती मां ने तथा इसके आंचल में बसी प्रकृति ने अब तक हमको दिल खोल कर अपना सर्वस्व लुटाया है। हमने भी अपने लालच के सारे द्वार खोलकर उसका भरपूर शोषण किया है। आज हम उस मुकाम पर पहुंच चुके हैं जब इस धरती मां को बचाने की गुहार लगाई जा रही है पर हमें तो यह गुहार अब भी सुनाई नहीं पड़ रही है। सब तरफ से चेतावनी दी जाने के बाद भी हम हैं कि सुधरने को तैयार नहीं है। साथियों आज हम उस मोड़ पर पहुंच चुके हैं कि हर सदस्य को इस धरती को बचाने के लिए कदम उठाने पड़ेंगे।

इस वर्ष गर्मी ने पिछले कई रिकॉर्ड तोड़े हैं। अत्यधिक तीव्र गर्मी के कारण कई हरे पेड़ सूख गए तथा पहाड़ों पर आग जलने की घटनाएं भी हमेशा से अधिक रहीं। कुल मिलाकर गर्मी को कम करने की संजीवनी ‘ पेड़’ और कम हो गए।

बढ़ती गर्मी की तीव्रता को कम करने के लिए हमारे पास दो ही रास्ते नजर आते हैं पहला हरित गैसों को अवशोषित करने के लिए अधिकाधिक पेड़ लगाए जाएं और वन क्षेत्र को बढ़ाया जाए। दूसरा उपाय हरित गैसों के उत्सर्जन को कम किया जाए।

हर वर्ष सघन पौधारोपण अभियान चलता है परंतु साल के अंत तक अधिकांश पौधे मर जाते हैं अतः आवश्यक है कि ऐसे पौधे लगाए जाएं जो तेज गर्मी को सहन करने की क्षमता रखते हैं जैसे इमली ,बबूल,सहजन,कीकर, पीपल,बरगद, अशोक, बिल्वपत्र, अमलतास, सीताफल आदि। इनमें से अधिकांश वृक्ष औषधीय महत्व के हैं तथा इन वृक्षों की उम्र भी अधिक है अर्थात कई वर्षों तक काफी मात्रा में कार्बन डाई ऑक्साइड का अवशोषण करने में सक्षम हैं। जिन पौधों को अपेक्षाकृत अधिक पानी की आवश्यकता है उन्हें ऐसे स्थान पर लगाया जाए जहां प्राकृतिक रूप से पानी उपलब्ध हो सके।

अक्सर हम फल खाकर बीज कचरे के डब्बे में फेंक देते हैं, थोड़ा सा जागरूक होकर बीजों को एकत्र कर वर्षा प्रारंभ होने के पहले खाली जमीन पर बिखेर दे तो पहली बरसात में उनमें से कई बीज अंकुरित हो जायेंगे। वर्षा ऋतु के 4 महीनों में अंकुरित बीज अपनी जड़ें जमा लेंगे।

इसी प्रकार प्रत्येक व्यक्ति को दो वृक्ष प्रतिवर्ष लगाने का संकल्प लेना चाहिए, देखते ही देखते हमारा वन क्षेत्र बढ़ जाएगा। हर हाल में वृक्षों की संख्या में बढ़ोतरी होनी चाहिए। विकास के नाम पर सड़क निर्माण में हजारों वृक्षों की बलि चढ़ जाती है। आज ऐसी आधुनिक तकनीक उपलब्ध है जिसमें पेड़ को आसानी से दूसरी जगह स्थानांतरित किया जा सकता है। ऐसी तकनीक महंगी है पर इस धरती मां की सेहत से ज्यादा महंगी नहीं है। कुछ ऐसे कानून बनाने चाहिए जैसे जिस घर में कम से कम 2 वृक्ष नहीं लगे हैं उन पर जुर्माना लगाया जाए।

सरकारी इमारतों पर वर्षा जल संचयित करने की अनिवार्यता होनी चाहिए जिससे भूमिगत जल का स्तर सुधरेगा तो वृक्षों के जिंदा रहने की संभावना बढ़ेगी। हमारी शहरी योजना ऐसी होनी चाहिए जहां कुछ जगह कच्ची हो जहां से पानी जमीन में अवशोषित हो सके। आजकल घरों में भी कच्ची जगह नहीं छोड़ी जाती है तथा सड़कें भी चौड़ी करने के लिए कच्ची जगह को भी पक्का कर दिया जाता है अतः पानी बहकर नालियों में चला जाता है और जमीन में अवशोषित नहीं हो पाता है यही कारण है कि भूमिगत जल काफी गहराई पर पहुंच गया है।

बढ़ते वैश्विक ताप को कम करने के लिए दूसरा उपाय है कार्बन फुटप्रिंट एवं हरित गैसों को कम करने की आवश्यकता है।
कोयले से बनने वाली बिजली कार्बन फुटप्रिंट को बढ़ाने का सबसे बड़ा कारक है। अतः व्यक्तिगत रूप से तथा सरकारी स्तर पर कोयले से प्राप्त होने वाली बिजली की निर्भरता को कम करना तथा सौर ऊर्जा व पवन ऊर्जा से प्राप्त होने वाली ऊर्जा पर निर्भरता बढ़ाने की आवश्यकता है।

सरकार को सौर ऊर्जा उपकरण लगाने पर बिजली बिल में कटौती तथा सब्सिडी आकर्षक बनाने की आवश्यकता है जिससे ज्यादा से ज्यादा उपभोक्ता इस ओर आकर्षित हो सकें। हमारे देश में कुछ जगह ऐसे भी प्रयोग किए गए हैं जहां बांधों से निकलने वाली सिंचाई नहर के ऊपर सौर पैनल लगाए गए हैं इससे सरकार को जमीन प्राप्त करने में भी दिक्कत नहीं होती है और सिंचाई नहर से वाष्पोत्सर्जन भी कम हो जाता है।इसी प्रकार सोलर कुकर, सोलर गीजर ,सोलर ड्रायर आदि सौर उपकरणों को ज्यादा से ज्यादा अपनाने की आवश्यकता है। सौर उपकरणों की जानकारी जन-जन तक पहुंचाने की आवश्यकता है। आज भी कई लोग सोलर कुकर से खाना पकाने की तकनीक तक नहीं जानते हैं।

कार्बन फुटप्रिंट बढ़ाने में दूसरा बड़ा कारक पेट्रोल व डीजल आधारित वाहन हैं। धीरे-धीरे हमें पेट्रोल डीजल आधारित वाहनों का मोह कम करके ई- वाहन अपनाने की आवश्यकता है।

निःसंदेह वैश्विक ताप को सीमित करने के सरकारी व निजी प्रयास किए जा रहे हैं जिसके सकारात्मक परिणाम भी प्राप्त हुए हैं पर अभी भी यह प्रयास अपर्याप्त हैं। अब हर एक व्यक्ति को प्रकृति को बचाने के लिए कदम उठाने की आवश्यकता है। छोटे-छोटे प्रयास बड़ा परिवर्तन ला सकते हैं।

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डॉ सुषमा तलेसरा
शिक्षाविद
उदयपुर

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