मेनार की बन्दूको और तोप वाली होली

 मेनार की बन्दूको और तोप वाली होली

होली के पावन पर्व से जुडी कई पारंपरिक प्रथाएं और इस उत्सव को मंनाने के भिन्न तरीके भारत के हर प्रदेश में प्रचलित है, जैसे उत्तर प्रदेश की लट्ठमार होली, मध्य प्रदेश की भगोरिया, पंजाब का होल्ला मोहल्ला, बंगाल का डोल जात्रा, केरला की मंजुल कुली आदि.

इसी तरह हमारे राजस्थान के मेवाड़ की बहुत ही प्रसिद्द और पारंपरिक होली उत्सव है – झबरी गेर मेवाड़ कीउदयपुर से 45 किमी दूर मेनार गांव में मनाई जाने वाली यह ख़ास होली हमेशा आकर्षण का केंद्र रही है.

करीब 400 वर्षों से मनाई जा रही है मेनार की बंदूकों और पटाखों वाली होली को – झबरी गेर मेवाड़ की भी कहते है, झबरी यानी ज़बरदस्त ताकत.

इतिहास

इस पारंपरिक होली का इतिहास मेनारिया ब्राह्मणों के मुग़ल सेना से विजियी युद्ध से जुड़ा है, कहते है कि मुगलो ने चित्तौड़गढ़ पर आक्रमण के बाद मेवाड़ पर हमला करने की कोशिश की थी, तभी मेनार के मेनारिया ब्राहमणों ने को बड़ी वीरतापूर्ण मुग़ल सेना को न सिर्फ रोका बल्कि पराजित भी किया.

इस गौरवशाली विजय से प्रसन्न मेवाड़ के महाराणा अमर सिंह प्रथम ने सम्मानपूर्वक कुछ ख़ास चीज़े मेनारिया समाज को दी जैसे, एक लाल रंग की जाजम, एक बांकिया (war instrument) और एक रण बांकुर ढोल (war drum) दिया.

तब से आज तक हर साल धुलण्डी के दूसरे दिन यह उत्सव मनाया जाता है, यह प्रतीक है मेनारिया के वीरो का मुग़लो पर जीत का.

कहाँ और कैसे मानते है

मेनारिया गाँव के औंकारेश्वर चौक पर धुलंडी के दुसरे दिन रात को चारो तरफ से समूहों में युवा मंडली हाथों में बंदूक और पटाखों के साथ आते है, बन्दुक और पटाखों की आवाज़ से मानो फिर उसी विजयी युद्ध का दृश्य सामने आता है.

तलवारों को हाथ मे लिए मेनारिया समाज के युवक घेर नृत्य करते है, तोप भी छोड़ी जाती है, पूरी रात जश्न मनाया जाता है।

देश विदेश से देखने आते है

मेनारिया गांव में सैकंडो हज़ारो की तादाद में लोग यह उत्सव देखने आते है, यहां तक कि देश विदेश में बसे मेनारिया समाज के लोग भी खास इसी दिन के लिए यहाँ आते है…..

( इस पोस्ट के साथ विडियो 2019 में श्री विजय नागदा द्वारा लिए गए थे )जानकारी और तथ्य Vijay Nagda द्वारा

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