विद्यापीठ के दीक्षांत समारोह में शामिल हुए रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह

 विद्यापीठ के दीक्षांत समारोह में शामिल हुए रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह

जनार्दन राय नागर राजस्थान विद्यापीठ डीम्ड टू बी विश्वविद्यालय उदयपुर का 16वें दीक्षांत समारोह शनिवार को आयोजित किया गया. समारोह के मुख्य अतिथि देश के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह थे.

राजनाथ सिंह ने 32 पी.एचडी की उपाधियां और 14 स्वर्णपदक सम्मान दिए. कार्यक्रम पूर्व सिंह द्वारा महाराणा प्रताप की चेतक आरूढ़ प्रतिमा और क्रिकेट स्टेडियम, पवेलियन का लोकार्पण भी किया गया.

अपने उद्बोधन में रक्षामंत्री राजनाथसिंह ने कहा कि जीवन में सफलता और विफलता दोनों ही का अपना महत्व है। असफलताएं हमें निखारने आती हैं, असफलता के बाद हमेशा कोशिश जारी रखनी चाहिए और सीखते हुए जीवन में आगे बढना चाहिए। अभिभावक भी अपने बच्चों की योग्यताओं और क्षमताओं का आकलन उनके परिणामों से नहीं करके उनके सीखने के प्रयासों से करें।

कुलपति प्रो. एस एस सारंदेवोत ने बताया कि राजनाथ सिंह दिल्ली से विशेष विमान से शनिवार सुबह 10.20 बजे पर डबोक एयरपोर्ट पर पहुंचे व वहां से सीधे प्रतापनगर स्थित विद्यापीठ विश्वविद्यालय परिसर में लगी संस्थापक मनीषी पंडित जनार्दनराय नागर की मूर्ति पर पुष्पांजलि अर्पित की, एनसीसी के कैडेटस ने रक्षामंत्री को गार्ड आफ ऑनर प्रदान किया। इसके बाद दो करोड़ रूपयों की लागत से तैयार पवेलियन, क्रिकेट स्टेडियम व प्रातः स्मरणीय महाराणा प्रताप की चेतक आरूढ़ प्रतिमा का लोकार्पण कर नमन किया।

कुलपति प्रो सारंगदेवोत ने बताया कि रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने 32 पी.एचडी धारकों को उपाधियां और 14 स्नातक व स्नातकोत्तर स्तर के स्वर्णपदक प्रदान किए। कर्नाटक भाजपा उपाध्यक्ष डॉ. तेजस्विनी अनंत कुमार को जनार्दनराय नागर संस्कृति रत्न सम्मान से नवाजा गया जिसके तहत उन्हें रजत पत्र, प्रतीक चिन्ह, उपरणा, पगड़ी, प्रशस्ति पत्र व एक लाख रूपये नकद राशि दी गई। यह सम्मान उन्हें अपने अगम्य चेतना फाउण्डेशन द्वारा भारतीय समाज, संस्कृति, प्रकृति व बच्चों की उन्नति हेतु विशिष्ट कार्यों को करने केे लिए प्रदान किया गया।

दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए कुलपति प्रो एसएस सारंगदेवोत ने संस्थान की विकास यात्रा व उत्कृष्ट कार्यों के बारे में विस्तार से बताते हुए कहा कि आज विद्यापीठ ने हर क्षेत्र में अपने आप को उत्कृष्ट मापदंडानुसार साबित किया है। उन्होंने विद्यार्थियों को भावी जीवन में सफलता के साथ-साथ संस्कारों से परिपूर्ण भारतीय विचारधारा को अपनाने व बनाए रखने का आहृवान किया। संस्थापक मनीषी पं जनूभाई ने 1937 में तीन रूपए व पांच कार्याकर्ताओं के साथ जो शिक्षा की अलख आदिवासी अंचल व सुदूर क्षेत्रों में जगाने का जो महायज्ञ शुरू किया वह आज 10 हजार विद्यार्थियों की संस्थान के रूप में वटवृक्ष का रूप ले चुका है। आज विद्यापीठ 40 से अधिक पाठ्यक्रमों का संचालन सफलतापूर्वक कर रहा है।  

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