शोर प्रदूषण, लाईट प्रदूषण पर नियंत्रण झील पारिस्थितिक तंत्र की सुरक्षा के लिए जरूरी

 शोर प्रदूषण, लाईट प्रदूषण पर नियंत्रण झील पारिस्थितिक तंत्र की सुरक्षा के लिए जरूरी

उदयपुर. वेटलैण्ड संरक्षण व प्रबंधन नियमों के प्रावधान चार के अनुरूप उदयपुर की बड़ी, फतहसागर, पिछोला, उदयसागर झीलों के संरक्षण व सुरक्षा पर प्रभावी कार्यवाही नही होने पर झील प्रेमियों ने चिंता व्यक्त की है।

रविवार को आयोजित झील संवाद में झील संरक्षण समिति के सचिव डॉ तेज राज़दान ने कहा कि राज्य सरकार को एनजीटी व उच्चतम न्यायालय के निर्देशों की अनुपालना सुनिश्चित करवानी चाहिए।

झीलों के इर्द गिर्द शोर प्रदूषण, प्रकाश ( लाईट) प्रदूषण पर नियंत्रण पूरे झील पारिस्थितिक तंत्र की सुरक्षा के लिए जरूरी हैं। राज़दान ने कहा कि झीलों के पर्यावरण तंत्र के स्वस्थ बने रहने से ही पर्यटन व्यवसाय स्थायी बना रह सकेगा।

झील विशेषज्ञ डॉ अनिल मेहता ने राजस्थान उच्च न्यायालय के आदेश के बावजूद उदयपुर में बड़े पैमाने पर पहाड़ियों की कटाई पर चिंता व्यक्त की। मेहता ने कहा कि पहाड़ियों के कटना नही रुका तो उदयपुर मरुस्थल बन जायेगा।

झील विकास प्राधिकरण के पूर्व सदस्य तेज शंकर पालीवाल ने कहा कि सज्जनगढ़ इको सेंसिटिव जोन में 2017 में लगी रोक के बावजूद व्यावसायिक निर्माणों का होना व होटलों -रिसोर्ट का बनना सरकारी तंत्र पर प्रश्नचिन्ह है।

गांधी मानव कल्याण समिति के निदेशक नंद किशोर शर्मा ने झील विकास प्राधिकरण द्वारा झीलों के उच्चतम भराव तल व जोन ऑफ़ इन्फ्लूएंस के निर्धारण में देरी पर चिंता व्यक्त की।

अभिनव संस्थान के निदेशक कुशल रावल ने कहा कि झीलों के उच्चतम भराव तल ( एच ऍफ़ एल ) के औसत स्तर से पचास मीटर तक की दूरी में कोई भी स्थायी प्रकृति का निर्माण नही किया जा सकता है।

झील प्रेमी द्रुपद सिंह, रमेश चंद्र राजपूत तथा मोहन सिंह चौहान ने कहा कि रोक के बावजूद झीलों पर देर रात तक आतिशबाजी होना कानून का मख़ौल है। संवाद से पूर्व चांदपोल गेट के पास श्रमदान कर झील क्षेत्र से कचरा, गंदगी, खरपतवार को निकाला गया।

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