अश्व पूजन की परम्परा का निर्वहन किया भंवर हरितराज सिंह मेवाड़ ने
शारदीय नवरात्रि के पावन पर्व पर मेवाड़ में ‘अश्व पूजन’ की परम्परा का निर्वहन करते हुए भंवर हरितराज सिंह मेवाड़ ने पुरोहितजी एवं पण्डितों के मंत्रोच्चारण के साथ अश्वों का पूजन किया।
अश्वों को पारम्परिक तरीकें से शृंगारित कर ‘लीला की पायगा’ पूजन स्थल पर लाया गया। जहाँ मंत्रोंच्चारण पर भंवर हरितराज सिंह मेवाड़ ने भंवर बाईसा प्राणेश्वरी कुमारी मेवाड़ के साथ ‘अश्व पूजन’ किया। पूजन में सुसज्जित राजस्वरूप, नागराज व अश्वराज अश्वों पर अक्षत, कुंकुम, पुष्पादि चढ़वाकर आरती की गई तथा अश्वों को भेंट में आहार, वस्त्रादि के साथ ज्वारें धारण करवाई गई।
मेवाड़ में अश्व-पूजन की परम्परा सदियों से चली आ रही है। महाराणा प्रतिवर्ष होने वाली शारदीय नवरात्रि की अष्टमी पर्यन्त संध्याकाल में नवमी होने पर उदयपुर के राजमहल स्थित माणक चौक में सरदार-उमरावों की उपस्थिति में अश्वों का पूजन करते थे। अश्वों के साथ गज का पूजन होने पर ‘अश्व-गज पूजन’ भी कहा जाता रहा है।