विश्व खाद्य दिवस पर पिछोला मे मिली ढेरों रोटियाँ !
- आम है झीलों मे गूंथे आटे, रोटियों, सब्जियों व मीट का विसर्जन
- आवश्यकता से अधिक भोजन पकाया नही जाए – परोसा नही जाए
उदयपुर, 16 अक्टूबर | झीलों, तालाबों मे खाद्य पदार्थों की झूठन व बचे भोजन का विसर्जन नैतिक, सामाजिक, पर्यावरणीय अपराध होकर अमानवीय कार्य है।
यह विचार विश्व खाद्य दिवस पर रविवार को आयोजित झील संवाद मे रखे गए। इस अवसर पर पिछोला मे भारी मात्रा मे विसर्जित रोटियों व अन्य भोज्य सामग्री को हटाया गया।
संवाद मे झील संरक्षण समिति के डॉ अनिल मेहता ने कहा कि भारत में प्रति वर्ष प्रति व्यक्ति भोजन की बर्बादी 50 से 70 किलोग्राम है।
आवश्यकता से अधिक भोजन पकाया नही जाए, परोसा नही जाए तो भोजन व्यर्थ व झूठा नही होगा। खाद्य पदार्थ बचेंगे और विश्व की भूख की समस्या का निराकारण हो जायेगा। झीलों मे गूंथे आटे, रोटियों, सब्जियों व मीट का विसर्जन आम है। यह शर्मनाक है।
झील विकास प्राधिकरण के पूर्व सदस्य तेज शंकर पालीवाल ने कहा कि झूठन व बचे भोजन का जल स्रोतों मे व जमीन पर विसर्जन जल, जमीन व हवा मे प्रदूषण बढ़ाता है। पालीवाल ने कहा कि कुछ दिन पूर्व ही झील मे मीट भरे बोरे मिले थे। ऐसे दुष्कार्यों को रोका जाना चाहिए तथा दोषियों को दंड दिया जाना चाहिए।
गांधी मानव कल्याण सोसाइटी के निदेशक नंद किशोर शर्मा ने कहा कि होटलों व बड़े सामाजिक समारोहों के बचे खुचे सामिश व निरामिश भोज्य चीजों का झील मे विसर्जन निरंतर जारी है। यह झीलों मे सड़ पेयजल को खराब कर रहा है।
झील प्रेमी द्रुपद सिंह ने प्रशासन से आग्रह किया कि होटलों, रेस्टोरेंटो , मीट व्यापारियों पर निगरानी रखी जाए ताकि वे झीलों मे विसर्जन नही कर सके।
इस अवसर पर श्रमदान कर झील मे विसर्जित खाद्य सामग्री को हटाया गया।