झील संवाद:पर्यटन धारण क्षमता से अधिक पर्यटन उदयपुर के लिए घातक
पर्यटन के अत्यधिक दबाव से उदयपुर की हवा, झीलें, मिट्टी दूषित हो रहे है। ऐसे में पर्यटन व पर्यावरण के मध्य संतुलन जरूरी है। यह विचार रविवार को आयोजित झील संवाद में व्यक्त किये गए।
संवाद में झील संरक्षण समिति के डॉ अनिल मेहता ने कहा कि एक दिन में डेढ़- दो लाख पर्यटक आना खुशी का विषय नही है। पर्यटन धारण क्षमता से अधिक हो रहा यह पर्यटन उदयपुर को गंभीर संकट में डाल देगा।
झील विकास प्राधिकरण के पूर्व सदस्य तेज शंकर पालीवाल ने कहा कि बढ़ते पर्यटन व्यवसाय से उदयपुर के पहाड़ कट रहे हैं। यह उदयपुर की जल प्रवाह प्रणाली के लिए घातक है।
गांधी मानव कल्याण सोसायटी के निदेशक नंद किशोर शर्मा ने कहा कि पेयजल की झीलों से पर्यटकों का यातायात पीने के पानी की गुणवत्ता पर एक खतरा है।
अभिनव संस्थान के निदेशक कुशल रावल ने कहा कि पर्यटक वाहनों से उदयपुर की वायु गुणवत्ता खराब हो रही है।
झील प्रेमी मोहन सिंह चौहान, ध्रुपद सिंह व रमेश चंद्र राजपूत ने कहा कि झीलों की मूल सीमाओं को बदल कर उनको छोटा कर दिया गया हैं । किनारे नष्ट कर दिए गए हैं। इससे देशी प्रवासी पक्षियों के आवास , रहवास, सहवास के लिए कोई जगह नही बची है।
संवाद से पूर्व श्रमदान कर पिछोला की सतह से पॉलीथिन, शराब व पानी की बोतलें, कचरे व खरपतवार को हटाया गया। श्रमदान में शोध छात्रा कृतिका सिंह सहित स्थानीय रहवासियों ने भाग लिया।