कोरोनाकाल से शुरू किया चित्र बनाना, अब 83 वर्षीय “जीजी” के चित्रों की होगी प्रदर्शनी
पिछले दो वर्षो से प्रतिदिन अपने हाथो से खुबसूरत आकृतियाँ निखारना, फिर उनमे रंग भरना. उदयपुर की सविता द्विवेदी द्वारा बनाई गई हर चित्रकला कल्पनाओं के विशालकाय सागर से चुन-चुन कर लाये गए बेशकीमती मोतियों के समान है और इनको एक साथ पिरो, माला का स्वरूप देने के उद्देश्य से एक चित्रकला प्रदर्शनी 8 मार्च को आयोजित होने वाली है.
हो सकता है कलाकार होना खास बात नहीं हो, न ही चित्रकला आपको आकर्षित करे पर क्या आप विश्वास करेंगे कि एक 83 वर्षीय बुज़ुर्ग महिला, जिन्होंने कभी कोई चित्र नहीं बनाया, बल्कि अपना पूरा जीवन अपने परिवार के लालन पालन में समर्पित कर दिया, उम्र के इस पड़ाव में जब ज़्यादातर लोग जीने की ही उम्मीद खो देते, वहां सविता द्विवेदी जिन्हें प्यार और सम्मान से सभी “जीजी” पुकारते है ने दो वर्षो में 200 से ज्यादा खुबसूरत चित्रकलाएँ बना दी.
प्रज्वलित प्रेरणा और सकारात्मकता से ओतप्रोत जीजी ने कोरोना की विषम परिस्थिति में आपदा को अवसर बनाया, अवसर जीने का, अपने कल्पनाओं की उड़ान को एक नया आसमान देने का, जिसे साकार करने में सहायक बने जीजी के पुत्र एवं उदयपुर के विख्यात कलाकार हेमंत द्विवेदी.
हेमंत द्विवेदी मोहनलाल सुखाड़िया यूनिवर्सिटी में विजुअल आर्ट के प्रोफेसर है और पिछले 30 वर्षो से टख़मण-28 के मेम्बर है. हेमंत बताते है, पहले लॉकडाउन में जीजी ने मुझसे कहा कि “देख कहीं जाना आना तो अब है नहीं, तुम मेरे लिए कुछ कलर और पेपर लाकर दे दो, कम से कम कुछ किया जाए”.
मैंने उन्हें पेंसिल कलर और पेपर दिए और तब से आज तक हर दिन शाम 4 से 7 बजे तक जीजी अपनी कल्पना और रंगों की दुनिया में खो जाती है, “जीजी” की बनाई हुई 200 चित्र कलाओं में से कुछ 70-80 को चरक मार्ग स्थित टख़मण-28 में प्रदर्शित किया जाएगा.
हेमंत आगे बताते है, जीजी कई बार रात को नींद नहीं आने पर चित्र लेके बैठ जाती. सतत काम मे खुद के जीवन से ही चित्रों के विषय मिल जाते जिससे तादात्म्य ओर मुखर होता. तीज त्योहार, शुभ प्रसंग, मेले, उत्सव, यादें, पुरानी फिल्म्स, आचार-विचार, जीवन और उसकी ऊर्जा – सब कुछ दिख जाता जीजी के सृजन में.
जीजी के चित्रों को परिप्रेक्ष्य करते हुए हेमंत द्विवेदी ने कहा, “सबसे महत्वपूर्ण अकादमिक पहलू ये हुआ कि आज जीजी के अपने चित्रों का एक खास शैलीगत आग्रह बन चुका है जहां आकृति ,रंग, हाव भाव व अन्यचित्रात्मक पहलू का तौर तरीका हो गया है. मुझे याद आता है कि माँ ने यदा कदा दीवारों पर सीलन के दागधब्बों में, या ऐसे ही बादलों मे शेप देखने जैसी दिलचस्पी दर्शाई है कभी कभार ओर शायद ये इंस्टिंक्टस ही अब उभर कर सामने आए.”
निःसंदेह, स्त्री स्वयं सर्जक होती है , जननी होती है ओर शायद जीजी के साथ यही हुआ कि उसने अपनी वैचारिकी को सौंदर्य और प्रयोगसिद्धि के साथ एक खास अंदाज में प्रस्तुत किया. आज जीजी हम सबके लिए प्रेरणा बन गई.