नाट्य संध्या में नाटक पागलखान का हुआ मंचन
थिएटरवुड कम्पनी और नाट्यांश सोसाइटी ऑफ ड्रामेटिक एंड परफोर्मिंग आर्ट्स के संयुक्त तत्वावधान में अशोक कुमार ‘अंचल’ द्वारा लिखित नाटक ‘पागलखाना’ का मंचन किया गया। 70 के दशक में लिखा गया, यह नाटक यह वर्तमान समय पर एकदम सटीक बैठता है। प्रतीकात्मक पागलो के माध्यम से वर्तमान राजनीति, सामाजिक व प्रशासनिक व्यवस्था पर करारा प्रहार करता है। साथ ही महिलाओं के प्रति समाज मंे पुरुष की सोच को भी उजागर करता है। इसमें शासन, प्रशासन, अपराधियों और भ्रष्टाचारियों की मिलीभगत से समाज में उत्पन्न समस्याओं को प्रदर्शित किया गया है।
पागलखाना एक ऐसा नाटक है, जो आज की हमारे समाज और देश की स्थिति को बताता है जहाँ सत्ता और शौहरत के बल पर सब कुछ जीता जा सकता है। हास्य से शुरू हो कर नाटक दर्शकों को गंभीरता की ओर ले जाता है। साथ ही सोचने भी पर मजबूर करता है कि आखिर हम लोग क्या है?, क्यों है?, क्या कर सकते हैं? और क्या कर रहे है?
कुछ किरदारो को छोड़ कर सभी को पागल के रूप में प्रदर्शित किया गया है, ताकि कोई प्रत्यक्ष रुप से किसी पर अंगुली ना उठाये और खुद ही अपने पद की पोल खोले और अपने राज सबके सामने उजागर करे। नाटक में आम जनता की तुलना पागलों से करते हुए वर्तमान हालातों को उजागर किया गया है। जब यही स्तम्भ देश को आगे बढ़ने की जगह खुद को आगे बढ़ाते है तब जनता का मौन रहना उचित है।
कथासार
कलाकार अपने अभिनय के माध्यम से समाज के चार मुख्य स्तंभ नेता, व्यापारी, मीडिया, प्रशासन की छविं को प्रस्तुत करतें है। इन चारो स्तंभों के कन्धो पर समाज और देश की प्रगति टिकी है। इन चार स्तम्भो के रूप में पहला पागल नेता, जो सत्ता और शक्ति को; दूसरा पागल उद्योगपति है, जो पैसे को; तीसरा पागल पत्रकार है जो प्रजातंत्र में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को; चौथा पागल गायक है, जो क्रांति और शोषण के खिलाफ विद्रोह को प्रदर्शित करता है।
वही इन सभी पागलो की देखभाल व रक्षा करने वाला दरबान जो पागल नही है, बल्कि पागलखाने का रक्षक है, वो भी लालच में आकर सत्ता और शक्ति के साथ मिलकर, सभी की आवाज़ो को दबाने का प्रयत्न करता है। नाटक में महिला किरदार सुरसतिया सभी किरदारों के दिमाग में होने वाले विभिन्न विचारों का केंद्र बनती है और सभी पागल उसके आस पास ही अपनी इच्छाओ को प्रकट करते है। इन्ही स्तंभों के द्वारा सुरसतिया, पागलखाने की एकमात्र महिला पात्र और सफाई कर्मचारी, का भी शोषण किया जाता है, जिसका बलात्कार कर मरने के लिए छोड़ दिया जाता है।
निर्देशक अशफ़ाक नूर खान पठान ने अपनी कल्पनानुसार दो नए किरदार पगली राधा (एक किन्नर) और मुखबीर (जो सभी घटनाओ का एक मूक गवाह है।) को शामिल किया है। यह पागल हमारी समाज में उन लोगो को चित्रित करते है जो सब कुछ देखकर और जानकार भी अनदेखा करते है और अनजान बने रहते है। दरअसल ये लोग समाज के मूक दर्शक जो सिर्फ स्वयं को ही बचाने चाहते है।
कार्यक्रम संयोजक मोहम्मद रिजवान मंसुरी ने बताया कि उदयपुर के थिएटरवुड कम्पनी और नाट्यांश सोसाइटी ऑफ ड्रामेटिक एंड परफोर्मिंग आर्ट्स की प्रस्तुति पागलखाना में मंच पर सूत्रधार की भुमिका में यश शाकद्वीपीय, उर्वशी कंवरानी, महावीर शर्मा, राधा की भुमिका में इंद्र सिंह सिसोदिया, मुखबीर की भुमिका में चक्षु सिंह रूपावत, गायक की भुमिका में अगस्त्य हार्दिक नागदा, पत्रकार की भुमिका में भुवन जैन, उद्योगपति की भुमिका में महेश कुमार जोशी, सुरसतिया की भुमिका में मनीषा शर्मा आमेटा और दरबान की भुमिका में अमित श्रीमाली ने अपने अभिनय कौशल के दम पर दर्शकांे का मन मोह लिया।
कार्यक्रम संयोजक अमित श्रीमाली ने बताया कि नाटक की परिकल्पना, प्रकाश अभिकल्पना और निर्देशन अशफ़ाक़ नुर खान पठान द्वारा किया गया। मंच पार्श्व में रूप सज्जा और वस्त्र विन्यास – योगीता सिसोदिया और नायिल शेख, संगीत निर्देशक और संचालन – हेमन्त आमेटा, प्रकाश संचालन – मोहम्मद रिजवान मंसुरी और रेखा सिसोदिया, मंच सहायक – हर्ष दुबे, मुकुल खांडिया, नमन मिश्रा, सोनाली सिन्हा, मनीष सैनी, रोहित सैन व हर्ष उपाध्याय का सहयोग प्राप्त हुआ।
विशेष सुचना
अगले सप्ताह दिनांक 1 अक्टुम्बर 2022 शनीवार को नाटक पागलखाना का मंचन जयपुर के जवाहर कला केन्द्र में किया जायेगा।