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दिव्यांग तैराकों का जोश और जूनून देख तालियों में गूंज उठा तरणताल

 दिव्यांग तैराकों का जोश और जूनून देख तालियों में गूंज उठा तरणताल

नारायण सेवा संस्थान व पीसीआई के साझे में चैम्पियनशिप की कई श्रेणियों में पदकों का फैसला

उदयपुर 26 मार्च। नारायण सेवा संस्थान एवं पैरालिम्पक कमेटी ऑफ इण्डिया के संयुक्त तत्वावधान में यहां हो रही 21वीं राष्ट्रीय चैम्पियनशिप के दूसरे दिन शनिवार को देश भर से जुटे दिव्यांग तैराकों ने पूरी शिद्दत से अपना दमखल दिखाया और दिव्यांगता की अलग-अलग श्रेणियों में पदकों पर कब्जा किया।

संस्थान अध्यक्ष प्रशान्त अग्रवाल ने बताया कि शारीरिक रूप से किसी न किसी खामी के बावजूद महाराणा प्रताप खेल गांव के तरणताल में पैरा तैराकों के जज्बे, चुस्ती और फुर्ती को देखकर दर्शकों ने दांतों तले अंगुली दबाली। खिलाड़ियों का उत्साह वर्धक करने वालों में ले. कमांडर शलभ शर्मा और प्रसिद्ध तैराक व प्रशिक्षक हेमेन्द्र सिंह राणावत भी थे।

अग्रवाल ने बताया कि चैम्पियशिप के दूसरे दिन बड़े सवेरे ही प्रतिभागी अपने प्रशिक्षकों व परिजनों के साथ तरणताल पहुंच गए और जमकर पूर्वाभ्यास के बाद निर्धारित समय 9 बजे अपनी-अपनी श्रेणियों की स्पद्र्धाओं में अपने जोश व जुनूज से दर्शकों का दिल जीत लिया। दृष्टिबाधित तैराकों को अपनी लेन में मछली सी फुर्ती से लक्ष्य की ओर बढ़ते देख दर्शक दीर्घा बार-बार तालियों से गूंज उठी। राष्ट्रीय पैरा तैराकी चैम्पियनशिप का समापन रविवार को प्रातः 11.30 बजे चैम्पियन ट्राफी अन्य पुरूस्कारों के साथ होगा।

दोनों पैरों से असमर्थ होते हुए भी विमलेश ने जीते कई मेडल्स

नारायण सेवा संस्थान व पीसीआई के सांझे में चल रही 21 वीं नेशनल स्विमिंग में उदयपुर आए प्रयागराज (उत्तरप्रदेश) निवासी विमलेश निशाद (36 वर्ष) जन्म से ही दोनों पैरों से चलने में असमर्थ है, चलने के लिए हाथों का इस्तेमाल करते है। निराशा की बादल उनके जीवन में हर रोज ही बरसते थे…. कभी समाज के तानों के रूप में तो कभी किसी और रूप में।

लेकिन कुछ कर गुजरने का जज्बा हमेशा से दिल में लिए हुए थे। नारायण सेवा संस्थान इनके जज्बे की कद्र करता हैं और इन्हें अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर गोल्ड मेडल जितवाने के लिए इनका मार्गदर्शन करेगा।

गांव से ही यमुना नदी निकलती है जिसमें तेरकर हर रोज स्कूल जाते थे। तैराकी तो बचपन में ही सीख ली थी लेकिन कभी पैरालंपिक प्रतियोगिता के बारे में नही सोचा। एक दिन एक कोच के संपर्क मे आए तो उनसे अत्यधिक प्रभावित हुए। उस कोच के प्रशिक्षण में 6 वर्षों तक पैरा तैराकी का कठौर परिश्रम किया ।

आखिरकार ईश्वर ने उनकी झोली में भी खुशियां डाली। 2009 में कोलकाता में 50 मीटर पैरा-स्विमिंग में हिस्सा लिया और पहले ही प्रयास में सिल्वर मेडल जीत लिया। जीत की खुशी ने इतना ज्यादा मोटिवेट किया कि पैरा स्विमिंग में ही अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर गोल्ड मेडल्स जीतने का दृढ़ निश्चय कर लिया।

अब तक राज्य स्तरीय पैरा -स्विमिंग प्रतियोगिता में कुल 11 (सिल्वर और कांस्य) पदक जीत चुके है।

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