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पद्मभूषण जगत मेहता की स्मृति में झील स्वच्छता श्रमदान

 पद्मभूषण जगत मेहता की स्मृति में झील स्वच्छता श्रमदान

भारत के सफलतम विदेश सचिव जगत मेहता जीवनपर्यंत झील सुरक्षा व संरक्षण के लिए समर्पित रहे

उदयपुर, 16 जुलाई,   पद्मभूषण जगत मेहता की 101 वीं जयंती की पूर्व संध्या पर रविवार को जगत  स्मृति स्वैच्छिक श्रमदान व संवाद हुआ। 

कार्यक्रम मे झील प्रेमी डॉ तेज राज़दान, डॉ अनिल मेहता, तेज शंकर पालीवाल, नंद किशोर शर्मा, कुशल रावल, द्रुपद सिंह, मोहन सिंह चौहान, रमेश चंद्र राजपूत ने जगत मेहता के झील संरक्षण मे योगदान का  स्मरण किया। श्रमदान कर झील सतह व किनारों से कचरे को हटाया गया।

झील संरक्षण समिति के अध्यक्ष रहे जगत मेहता उदयपुर की झीलों व आयड नदी के जल ग्रहण क्षेत्र व उनकी मूल सीमाओं की सुरक्षा व संरक्षण पर अंतिम श्वांस तक चिंतित व संघर्षरत रहे।  वे अपनी विदेश  सेवा अवधि मे अवकाश पर जब भी उदयपुर आते थे, झीलों पर जाकर श्रमदान अवश्य करते थे। उनके  प्रयासों से ही उदयपुर की झीलों के लिए 125 करोड़ की राष्ट्रीय झील संरक्षण योजना स्वीकृत हुई ।  झील विकास प्राधिकरण की स्थापना के पीछे उनके लंबे प्रयास रहे  ।

17 जुलाई 1922 को जन्मे मेहता की प्रारंभिक शिक्षा विद्या भवन स्कूल में हुई। मेहता की उच्च शिक्षा इलाहबाद विश्वविद्यालय तथा कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय मे हुई। वे इलाहबाद विश्वविद्यालय में प्राध्यापक के पद पर तथा भारतीय नौसेना में भी कार्यरत  रहे।

मेहता वर्ष 1947 में देश की आजादी के समय विदेश सेवा में आये । वे विदेश नीति आयोजना विभाग के पहले प्रमुख थे । मेहता वर्ष 1976 से वर्ष 1979 तक देश के विदेश सचिव रहे ।

मेहता का विदेश सेवा का कार्यकाल अनेक उपलब्धियों से भरा रहा। वर्ष 1960 में भारत चीन सीमा विवाद सुलझाने, वर्ष 1975 में युगाण्डा से निकाले गये भारतीयों के मुद्दों का निराकरण करने,  वर्ष 1976 में पाकिस्तान के साथ सामान्य संबंधो की बहाली, भारत पाकिस्तान के मध्य वर्ष 1976 में सलाल बांध एवं वर्ष 1977 में फरक्का बांध विवाद निपटाने एवं वर्ष 1978 मे नेपाल के साथ व्यापारिक रिश्तों संबंधी समझौतों में मेहता की ऐतिहासिक भूमिका रही।

मेहता ने अपने विदेश सेवा काल में 50 से अधिक देशों के साथ भारत के बहुपक्षीय संबंधों की मजबूती  पर बने दलों का नेतृत्व किया। कोमनवेल्थ प्रधानमंत्रियों की बैठकों तथा संयुक्त राष्ट्र संघ के कई सम्मेलनों मे मेहता की उपस्थिति व योगदान इतिहास का एक महत्वपूर्ण  हिस्सा है। सेवा निवृति पश्चात वे टेक्सास विश्वविद्यालय में विजिटिंग प्रोफेसर भी रहे।

वर्ष 1985 से वर्ष 1994 तक वे सेवा मन्दिर के अध्यक्ष रहे तथा वर्ष 1993 से वर्ष 2000 तक विद्या भवन के अध्यक्ष रहे।

मेहता ने वर्ष 1985 मे “मिलिटराइजेशन इन द थर्ड वर्ल्ड”, वर्ष 2002 मे  “द मार्च ऑफ़ फ़ॉली इन  अफ़ग़ानिस्तान”, वर्ष 2006 मे “निगोशिएटिंग फॉर इंडिया”, वर्ष 2008 मे “रेस्क्यूइंग द फ्यूचर”, वर्ष 2010 मे “द ट्राइस्ट बीट्रेयड- रिफ्लेक्शन ऑन डिप्लोमेसी एंड डवलपमेंट “जैसी अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त पुस्तकें लिखी।

वर्ष 2014 मे मेहता का देहावसान हुआ।

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