विद्या भवन भाषा मंच: बसंतोत्सव साहित्यिक संगोष्ठी

 विद्या भवन भाषा मंच: बसंतोत्सव साहित्यिक संगोष्ठी

साहित्य और कलाएँ करती है आक्सीजन जोन का निर्माण — दाधीच

आदिकाल से कविताएँ परिवर्तन के लिए बसंत का आह्वान करती आई है। साहित्य और कलाएं एक ऑक्सीजन जोन का निर्माण करती है, जो प्रदूषण युक्त वातावरण से भरे किसी भी शहर की सेहत के लिए आवश्यक होता है।

यह विचार राजस्थान साहित्य अकादमी संविधान सभा के सदस्य वरिष्ठ साहित्यकार किशन दाधीच ने विद्या भवन भाषा मंच की ओर से आयोजित बसंतोत्सव साहित्यिक संगोष्ठी मे व्यक्त किये। अध्यक्षता विद्या भवन प्रबंधन बोर्ड की प्रतिनिधि पुष्पा शर्मा ने की। संयोजन विजय मारू ने किया।

विद्या भवन पॉलिटेक्निक सभागार मे आयोजित इस कार्यक्रम मे अकादमी की सरस्वती सभा की सदस्य डॉ मंजु चतुर्वेदी सहित वरिष्ठ साहित्यकार उपस्थित रहे।

संगोष्ठी मे किशन दाधीच ने अपनी प्रसिद्ध रचना “एक जुलाहा गा रहा है, चरखियो की चाल पर, चरखियों की चाल सी है जिंदगी आजकल” प्रस्तुत की। कवि नरोत्तम व्यास ने ” एक जगह दो बैठ सके, कुछ हरी घास रखना- वंहा सहारे कोई एक पेड़ पास रखना ” पंक्तियाँ प्रस्तुत करते हुए पेड़ व पर्यावरण को बचाने का आह्वान किया। डॉ ऋतु मथारू ने “बासन्ती मौसम में पगला मन ये बोराया, हर दिन हर क्षण आओ मिलकर बसंत का आह्वान करें”, प्रमिला शरद ने “कली कली मुस्काई भँवरों सी शरमाई, देखो सखी आया ये बसंत है”, श्याम मठवाल ने “पत्ते नीचे गिर रहे, नवजीवन उग रहा, कैसी ये ऋतु आयी सब पर भारी ये शूल”, डॉ मधु अग्रवाल ने “सभी बरगद के साए में जटाएँ मिल ही जाएंगी-ज़रा विश्वास से देखो दुआएँ मिल ही जाएंगी” रचनाएँ प्रस्तुत की।

डॉ अरुण चतुर्वेदी ने उदयपुर मे बसंतोत्सव आयोजनों के बदलते स्वरूप पर चर्चा की। हेमचंद्र वैष्णव ने बसंत और प्रेम पर रचना सुनाई। प्रारंभ मे प्राचार्य डॉ अनिल मेहता ने साहित्यकारों का स्वागत किया।

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