रिवर मेन रमन कांत त्यागी का विद्या भवन उदयपुर में उद्बोधन
नदी नही भूलती अपना रास्ता व हुआ दुर्व्यहवार
नदी का पेटा उसका अपना घर है जबकि उसका फ्लड प्लेन उसका मोहल्ला, उसमे यदि इंसान घुस कर निर्माण करेगा तो नदी उसे माफ नही करेगी। वह एक दिन सभी को बहा कर ले जायेगी।
यह विचार नदी पुत्र, रिवर मेन ऑफ इंडिया के नाम से विख्यात, भारतीय नदी परिषद के अध्यक्ष रमन कांत त्यागी ने शनिवार को विद्या भवन पॉलिटेक्निक स्थित उदयपुर वॉटर फोरम द्वारा आयोजित संगोष्ठी में व्यक्त किए।
संविधान निर्मात्री सभा के सदस्य रहे, विद्या भवन के संस्थापक डा मोहन सिंह मेहता की 129 जयंती पर आयोजित, “सतही जलस्रोतों व भूजल स्रोतों के संरक्षण में समाज की भूमिका” विषयक संगोष्ठी में बोलते हुए रमन कांत ने कहा कि नदी की स्मरण शक्ति बहुत तेज होती है। वह अपने साथ हुए व्यहवार व अपने बहाव क्षेत्र को कभी नही भूलती।
आयड नदी में हो रहा अवैज्ञानिक कार्य नदी सहन नही करेगी। वह इसे बहा ले जायेगी। रमन कांत ने कहा कि अनेक छोटी छोटी नदियां लुप्त हो गई है। समाज को, खास कर युवा वर्ग को आगे आकर इन नदियों को खोजना होगा तथा पुनः मूल स्वरूप में लाना होगा। अन्यथा, भविष्य में कभी सूखा, कभी बाढ़ का सामना करना पड़ेगा।
रमन कांत ने कहा कि नदी परिषद द्वारा भारत नदी दर्शन पोर्टल बनाया जा रहा है। इस पोर्टल पर आम नागरिक अपने क्षेत्र की नदियों की जानकारी डाल भी सकेंगे तथा जानकारी ले भी सकेंगे । पोर्टल पर नदी संबंधी विविध वैज्ञानिक व तकनीकी जानकारियां उपलब्ध होगी।
कार्यक्रम में वेस्टर्न सिडनी यूनिवर्सिटी, ऑस्ट्रेलिया की शोधकर्ता नेपाल निवासी सुस्मीना गजुरेल ने मारवी सुभूजल योजना के तहत उदयपुर के भींडर-हिंता क्षेत्र में ग्राम वासियों की भूजल
सहकारिता समितियों पर प्रस्तुतीकरण किया। सुस्मीना ने कहा कि समाज द्वारा भूजल के वैज्ञानिक प्रबंधन का यह मॉडल पूरे विश्व के लिए अनुकरणीय है।
अध्यक्षता करते हुए पॉलिटेक्निक प्राचार्य डॉ अनिल मेहता ने कहा कि नदी, तालाब के विकास के वर्तमान प्रचलित मॉडल अवैज्ञानिक अव्यहवारिक हैं। नदियों को नहर की तरह तथा झीलों, तालाबों को एक सुंदर स्विमिंग पूल की तरह विकसित करना नदी, तालाब पुनरोद्धार अथवा जीर्णोद्धार नही है। यह नदी पारिस्थितिकी तंत्र पर अत्याचार है।
सुखाडिया विश्वविद्यालय की भूगोल विभागाध्यक्ष प्रो सीमा जालान ने पहाड़ियों को महत्वपूर्ण भौगोलिक व पर्यावरणीय संरचनाएं बताते हुए कहा कि जल प्रवाह व संचय व्यवस्था के स्थायित्व के लिए पहाड़ियों को काटने से बचाना चाहिए।
कार्यक्रम में डॉ भगवती अहीर तथा डॉ फरजाना ने कहा कि जलस्रोतों के संरक्षण में समाज को अपनी भागीदारी बढ़ानी होगी।
कार्यक्रम में सुखाडिया विश्वविद्यालय तथा महाराणा प्रताप कृषि विश्वविद्यालय के शोधार्थियों ने भी विचार व्यक्त किए। संचालन डॉ योगिता दशोरा ने किया।