वर्ल्ड टाउन प्लानिंग डे पर आयोजित हुआ सेमिनार

 वर्ल्ड टाउन प्लानिंग डे पर आयोजित हुआ सेमिनार

विश्व नगर आयोजना दिवस ( वर्ल्ड टाउन प्लानिंग डे, 8 नवम्बर) के अवसर पर इंस्टिट्यूशन ऑफ टाउन प्लानर्स इंडिया ( आई टी पी आई ) राजस्थान इकाई तथा नगर नियोजन विभाग, राजस्थान सरकार के संयुक्त तत्वावधान में “शहरी विकास व जलवायु परिवर्तन संकट” विषयक सेमिनार का आयोजन किया गया।

विषय प्रवर्तन करते हुए आई टी पी आई के काउंसिल मेम्बर तथा राज्य के पूर्व अतिरिक्त मुख्य नगर नियोजक सतीश श्रीमाली ने उदयपुर की स्थापना से लेकर वर्ष 1947 तक उदयपुर की विकास यात्रा को प्रस्तुत किया। श्रीमाली ने कहा “उस काल मे जनसंख्या सीमित थी, पेट्रोल डीजल वाहनों का कोई दबाव नही था, तब भी गुलाब बाग, सहेलियों की बाड़ी जैसे हरित फेफड़े विकसित हुए, कई बड़े व छोटे तालाब बने, पहाड़ों को काटा नही जाता था, उनके ढलान सुरक्षित थे, जलाशयों तालाबों संरक्षित रखा जाता था, भूजल का पुनर्भरण पर्याप्त व निरंतर हो, इसका ध्यान रखा जाता था। लेकिन, आजादी के बाद के वर्षों में, खासकर 1980 के पश्चात से  उदयपुर की आबोहवा को गंभीर नुकसान हो रहा है। मौसम, वनस्पति, बरसात तंत्र सभी अनियमित हो गए हैं । ऐसे में उदयपुर का  जल व वायु  खराब है। इसी कारण जलवायु परिवर्तन का संकट उदयपुर पर गहरा रहा है। इसे ठीक करने के लिए  शहरी विकास को प्रकृति अनूकूल रखना होगा। पहाड़ों, जंगलों को बचाना होगा.

विशेषज्ञ वक्ता, विद्या भवन पॉलिटेक्निक के प्राचार्य व पर्यावरणविद डॉ अनिल मेहता ने कहा कि टाउन प्लानिंग सिद्धांतों व  प्रक्रिया को पुनः परिभाषित करना जरूरी है।

आज रिवर्स टाउन प्लानिंग की जरूरत है, नगरीय सीमा के बाहर के  क्षेत्रों को एक हरित पट्टिका की तरह विकसित करना होगा, वंहा के पहाड़ों, जलाशयों, नदी- नालों, जल आवक जावक मार्गों को सुरक्षित- संरक्षित करने के पश्चात ही नगरीय क्षेत्र की भू आयोजना करनी चाहिए। 

मेहता ने कहा कि मास्टर प्लान बनाने में सर्कुलर इकोनॉमी के बजाय सर्कुलर इकोलॉजी, इकोनॉमिक  डेवलपमेंट के बजाय इकोलॉजिक डेवलपमेंट, ह्यूमन सेंट्रिक अप्रोच के स्थान पर नेचर सेंट्रिक अप्रोच अपनानी होगी,तभी उदयपुर का अस्तित्व बचा रह सकेगा।  शहर न्यूनतम कचरा पैदा करे, न्यूनतम जल उपभोग करे, न्यूनतम ऊर्जा खपत करे एवं न्यूनतम कार्बन उत्सर्जन करे, इसके लिए जन शिक्षण के साथ साथ नगरीय योजना में प्रकृति संरक्षण सिद्धान्तों का समावेश जरूरी है।

मेहता ने कहा उदयपुर के कुछ क्षेत्र मल्टीस्टोरी बिल्डिंग वाले क्षेत्र बन गए है। वंहा भूजल का अत्यधिक दोहन है। छोटे  भूभाग में  जमीन के ऊपर  बहुत सारी ऊंची इमारतों का दबाव तथा जमीन के नीचे भूजल का क्षरण एक गंभीर खतरा है। इन क्षेत्रों में जमीन धंस कर व्यापक हानि हो सकती है।

इक्लि साउथ एशिया के प्रबंधक भूपेंद्र सालोदिया ने कहा कि उदयपुर जलवायु परिवर्तन संकट से घिर चुका है, औसत तापक्रम दो डिग्री तक बढ़ गया है जो एक गंभीर खतरा है। इससे जल स्रोतों, वनस्पतियों पर तो दुष्प्रभाव आ ही रहा है,इंसानों में भी बीमारियां बढ़ेगी। रोजगार का संकट भी पैदा होगा।

अध्यक्षता करते हुए उदयपुर के वरिष्ठ नगर नियोजक नरहरि  सिंह पंवार ने कहा कि उदयपुर को श्रेष्ठ व स्वस्थ शहर बनाने के लिए सभी को मिलजुल कर कार्य करना होगा। हर व्यक्ति को  शहर को अच्छा रखने की  जिम्मेदारी लेनी होगी ।

उदयपुर विकास प्राधिकरण की  उप नगर नियोजक ऋतु शर्मा ने कहा कि पहाड़ो को काटने से रोकने के लिए इन पर किसी भी प्रकार के निर्माण पर रोक लगा देनी चाहिए। निजी खातेदारी के पहाड़ों को मुआवजा देकर  अवाप्त कर  लेना चाहिए। 

उप नगर नियोजकों वंदना चौहान,  सर्वेश्वर, नीलम , दिनेश उपाध्याय, निकिता शर्मा, वैभव ओझा ने कहा कि नागरिक स्वास्थ्य व पर्यावरण स्वास्थ्य नगर नियोजन  के केंद्र में होने चाहिए।  सस्टेनेबिलिटी को ध्यान में रख उदयपुर का विकास करना होगा ।शहर में सड़कों व खुले स्थानों पर अधिकतम  हरीतिमा करनी होगी तथा पेड़, पहाड़, पानी, पर्यावरण की सुरक्षा को ध्येय बनाना होगा।

पुरातत्व अध्येता रघुवीर सिंह देवड़ा व पर्यटन विज्ञान शोधार्थी सौम्या कपिल ने  आयड़ सभ्यता  व नदी घाटी को आधार मानकर पर्यटन विकास का सुझाव रखा।  सेमिनार के पश्चात नगर नियोजन कार्यालय परिसर में फलदार पौधे लगाए

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