प्लास्टिक प्रदूषण से कैसे निपटें- 5R सूत्र
प्रतिवर्ष 5 जून को अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण दिवस मनाया जाता है , वर्ष 2023 में इसकी थीम ‘बीट द प्लास्टिक पॉल्यूशन’ दी गई है।
जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को सब महसूस कर रहे हैं ।यह भी महसूस कर रहे हैं कि जलवायु परिवर्तन से होने वाले संकटों से अमीर गरीब सब प्रभावित होते हैं। सब चिंतित तो है। पर अपनी आदतों में हम उतना परिवर्तन नहीं कर रहे हैं।प्लास्टिक प्रदूषण के ही हालत देखिए।
प्लास्टिक थैलियों का प्रचलन तीन-चार दशक में ही बढ़ा है, यूज एंड थ्रो का प्रचलन भी तीन-चार दशक पुराना ही है। इन दोनों प्रचलन के पीछे सुविधा भोगी संस्कृति का प्रभाव है। तब सोचा भी नहीं था कि प्लास्टिक प्रदूषण वैश्विक समस्या बन जाएगी।
आधुनिकता के नाम पर प्लास्टिक प्रदूषण फैलाना अक्षम्य है। हमें इतना संवेदनशील होना ही चाहिए कि हमारी लापरवाही मूक जीवों को न झेलनी पड़े। प्लास्टिक सेवन से ये जीव दर्द के साथ जीवन व मृत्यु के बीच संघर्ष करने को मजबूर हो जाते हैं। इन जीवों के माध्यम से प्लास्टिक जहर हम तक पहुंच रहा है जो बढ़ते कैंसर का एक कारण है।
सरकार की तरफ से कई बार एकल प्रयुक्त प्लास्टिक को प्रतिबंधित किया गया है पर उचित सख्ती व निगरानी के अभाव में आज तक प्लास्टिक खुलेआम प्रयुक्त हो रहा है ।न आम जनता गंभीर नजर आ रही है, ना ही सरकार को सरोकार है। जब भी प्लास्टिक प्रतिबंधित किया जाता है तो छोटे दुकानदारों तथा ठेले वालों से प्लास्टिक बरामद कर जुर्माना लगा दिया जाता है, जबकि एकल प्रयुक्त प्लास्टिक उत्पादन बंद कर दिया जाए तो स्वत ही बाजार में आना बंद हो जाएगा।
प्लास्टिक प्रदूषण कम करने के लिए 5R सूत्र अपनाना होगा।
पहला R रिड्यूस( न्यून करना)-
जिस प्रकार घर से बाहर निकलते वक्त कुछ रुपए व पर्स लेकर निकलना नहीं भूलते हैं उसी तरह एक पुरानी साफ-सुथरी प्लास्टिक या कपड़े की थैली लेकर जाना ना भूलें। छोटे से इस कदम के लिए ना हमें कोई खर्च करना है ना कोई कष्ट उठाना पड़ता है सिर्फ जागरूक व जिम्मेदार नागरिक बनने की आवश्यकता है। हर व्यक्ति इतनी सी आदत बदल ले तो प्लास्टिक का उपयोग कम हो जाएगा।
दूसरा R रीयूज (पुनर्पयोग)
एकल प्रयोग प्लास्टिक को सड़कों पर फेंकने की बजाय उसका पुनर्पयोग किया जा सकता है। जैसे पानी की खाली बोतलों को काटकर उसमें मिट्टी डालकर पौधे लगाए जा सकते हैं ,बहुत सुंदर वर्टिकल गार्डन बनाया जा सकता है। सब्जी फल खरीदते समय पुरानी प्लास्टिक की थैली को ही पुनः प्रयुक्त किया जा सकता है।
तीसरा R रीसाइकिल (पुनर्चक्रण)-
जो प्लास्टिक उपयोग करने लायक नहीं है उसके लिए एक अलग पात्र लगाकर उसमें एकत्र करते चले जाएं एवं पुनर्चक्रण के लिए दे दिया जाए जिससे कई उपयोगी मजबूत पात्र निर्मित होते हैं। इकोनॉमिक्स टाइम्स. इंडिया टाइम्स . कॉम के अनुसार भारत में प्रति वर्ष 3.4 मिलियन टन प्लास्टिक कचरा एकत्र होता है जिसमें से मात्र 30% का पुनर्चक्रण हो पाता है, जर्मनी में 66.6% एवं नॉर्वे में 97% प्लास्टिक का पुनर्चक्रण किया जाता है।
चौथा R रिफ्यूज (इन्कार)-
ऊपर के 3R अपनाने के बाद स्वत ही प्लास्टिक को ना कहने की प्रवृत्ति जाग जाएगी। यदि हमारे पास थैला है तो हम स्वत ही प्लास्टिक की थैली में सब्जी फल लेने से इनकार कर देंगे।
पांचवा R रीक्रिएट (पुनर्सृजन)-
ऐसा नहीं है कि अब तक प्लास्टिक वेस्ट से कुछ सृजन नहीं किया गया है, कई नवाचार इस दिशा में हुए हैं। ऐसे नावाचारों का अधिकाधिक प्रचार-प्रसार कर अपने साथ कारवां जोड़ने की आवश्यकता है। भीलवाड़ा की एक फैक्ट्री में वेस्ट प्लास्टिक से पतले धागे बनाकर उससे कपड़ा निर्मित किया जा रहा है। वेस्ट प्लास्टिक से ईंटें बनाई गई हैं जो सभी मापदंडों पर खरी उतरी हैं। सड़क के डामरीकरण में प्लास्टिक को मिलाकर बनाने से 10 गुना अधिक मजबूत सड़क निर्मित होती है। प्लास्टिक की खाली बोतलों से कई तरह की सजावट की सामग्री निर्मित की जा सकती है। प्लास्टिक और निर्माण कार्य में सीमेंट के साथ प्रयोग करने पर मजबूत इमारतें तैयार की जा सकती हैं। इसके अतिरिक्त मुम्बई का एक एनजीओ वाटर प्रूफ बैग, बेंच ,डेस्क, गमले आदि बनाने का कार्य कर रहे हैं।
प्लास्टिक प्रदूषण मनुष्य फैला रहा है और उसके दुष्परिणाम उसे ही झेलने पड़ रहे हैं, चाहे इससे निकलने वाली मीथेन गैस वैश्विक ताप को बढ़ा रही है या समुद्री जीवो द्वारा उपभोग किया प्लास्टिक अप्रत्यक्ष रूप से मनुष्य के शरीर में पहुंच रहा है। यहां तक की प्लास्टिक की वस्तु में रखे खाद्य पदार्थ अथवा पानी के माध्यम से भी माइक्रो प्लास्टिक हमारे शरीर तक पहुंच रहा है।
दृढ़ इच्छाशक्ति से आज भी इस पृथ्वी को प्लास्टिक प्रदूषण से मुक्त किया जा सकता है। आओ हम सब मिलकर इस अभियान का अंग बनें।
डॉ सुषमा तलेसरा
शिक्षाविद् एवं पर्यावरण प्रेमी